Friday, December 11, 2009

पति, पत्नी के घर में रहते हैं

इस चिट्ठी में त्रिवेन्दम में घूमने की जगहों की चर्चा है।

महल में बाहर की तरफ उन्नीसवीं शताब्दी की बनी एक खास घड़ी, जिसमें घन्टे के पूरे होने पर उतनी बार ऊपर के बकरों सिर, एक दूसरे से टक्कर मारते हैं।

हम केरल घूमने, इसलिये गये थे क्योंकि मुझे त्रिवेन्द्रम में मुझे कुछ काम था। इस काम के लिये, मैंने यात्रा के आखरी दिन, दोपहर के भोजन के बाद, का समय रखा था। हमारे पास सुबह का समय था। हमने वह समय त्रिवेन्द्रम घूमने का प्रोग्राम बनाया। हम लोग सबसे पहले वहाँ के राजा के महल  गये। वहां हमने एक गाइड लिया। उसने बताया,
'केरल राज्य तीन राज्यों को मिलाकर बना  है। इसकी स्थापना १९५६ में हुई थी। त्रिवेन्द्रम पहले त्रावणकोर राज्य (Travancore State) में था। यहाँ पर राजा का लड़का तो नहीं, पर उस  की बहन का लड़का राजा बनता था।'
 मेरे पूछने पर कि  ऎसा क्यों होता था, तब उसका जवाब था,
’यह इसलिये होता था क्योंकि ट्रावनकोर राज्य मातृ प्रधान राज्य था। यदि परिवार में लड़की नहीं है तो लड़की गोद ले ली जाती थी।’
इसने मुझे शिलॉग में खसी लोगों की याद दिलायी। वह भी मातृ प्रधान समाज है। वहां पर पुरूष अपनी पत्नी का सर नाम रख लेतें हैं और उसी के घर रहने चले जाते  हैं। गाइड के मुताबिक,
'यहां पुरुष शादी के बाद महिलाओं का सर नेम तो नहीं रखते पर अधिकतर पति, पत्नियों के साथ उनके घर में रहते हैं और यह गलत नहीं समझा जाता है।'
हमारे तरफ तो ऎसे लोगों को घर जमाई कहा जाता है और अच्छी नजर से नहीं देखा जाता है।

महल को देखते समय गाइड ने यह बताया,
'इस महल को हजार आदमियों ने मिलकर चार साल में बनाया था। लेकिन राजा इसमे सात महीने ही रह पाये। क्योंकि उनकी मृत्यु हो गयी। उसके बाद राजा के परिवार वालों ने इस महल को छोड़ दिया। उन्हे लगा कि यह महल अपशकुन है। इसलिए उसके बाद इस महल में कोई नहीं रहा।'

राजा के महल के बगल में ही एक भगवान विष्णु का मंदिर है। इस मंदिर में कोई कोट, पैंट पहनकर नहीं जाया जा सकता है और महिलायें सलवार, कुर्ता पहनकर नहीं जा सकती हैं। इसे देखने जाने के लिए आपको ऊपर के कपड़े उतारने पड़ेगें  और एक धोती पहनकर जाना होगा। महिलायें सलवार, कुर्ता के ऊपर धोती पहन सकती है। 

शुभा मंदिर को भीतर से देखने नहीं गयी पर मुझे लगा कि इसे अन्दर से देखना चाहिए।  फिर मुश्किल पड़ी धोती पहनने की। वहां पर धोती  किराये पर भी मिल रही थी पर मैने वहीं पर एक केरल में पहनी जाने वाली शर्ट और धोती  खरीदी। उसे ही पहन कर अन्दर गया।

मन्दिर, अन्दर से बहुत भव्य है। इसमें एक जगह सारी महिलायें भजन गा रही थीं। इसमें, भगवान विष्णु की, शेषनाग की शैय्या पर लेटे हुए मूर्ति है। इस मूर्ति को  एक बार में नहीं देखा जा सकता है। इसके लिऐ कई दरवाजे हैं। 

मैं इस मूर्ति के किसी भाग को नहीं देख पाया क्योंकि वहाँ पर भीड़ थी और मुझे लगा कि यदि में लाइन में खड़ा होऊँगा तो शायद सब समय यहीं पर चला जायेगा। मैंने महल में ही उस मूर्ति का छोटा सा मॉडल  देख लिया था। त्रिवेन्द्रम में एक ताराघर (Planetarium) और चिड़ियाघर (Zoo) भी है। मैं इन्हें भी देखना चाहता था।

मंदिर देखने के बाद, हम लोग ताराघर देखने गये। वहां पता चला कि  केवल एक प्रदर्शन अंग्रेजी में है और बाकी सब मलयालम में हैं। अंग्रेजी का प्रदर्शन बारह बजे था लेकिन वह तभी चलेगा जब कि कम से कम चालीस व्यक्ति देखने के लिए आये। हम लोगों को लगा कि यहां इन्तजार करने से अच्छा है कि हम चिड़िया घर देख लें।



चिड़ियाघर में तरह तरह के जानवर देखने को मिले। मैंने वहां पर जानवरों की तसवीर इस चिट्ठी में प्रकाशित की हैं। चिड़ियाघर में एक बात अजीब लगी। वहां पेड़ों पर बहुत से चमगादड़ लटके थे। हम लोग भोजने के समय वापस आ गये। मुझे अपना काम भी करना था

मुझे काम के बाद, वहां के लोगों ने यादगार के रूप में राजा रवी वर्मा का एक चित्र यादगार के लिये भेंट किया। वे अप्रैल २९,१८४८ में जन्में त्रावणकोर राज्य के चित्रकार थे। उनकी मृत्यु अक्टूबर २, १९०६ में हो गयी।


साड़ी पहने मराठी महिला का चित्र, जो मुझे भेंट में मिला 

रवी वर्मा, महाभारत एवं रामायण की घटनाओं और पारंपरिक परिधान साड़ी पहने भारतीय महिलाओं के सुन्दर चित्र बनाने के लिये जाने जाते हैं। उनके चित्र, भारतीय परम्परा और युरोपीय कला के एकीकरण के, सबसे अच्छे उदाहरण भी हैं। उन्हें १८७३ में वियाना चित्रकला प्रदर्शनी में प्रथम पुरुस्कार भी मिला। उनके अन्य चित्र आप यहां देख सकते हैं।


यदि आप त्रिवेन्दम जायें, तो यह तो हो नहीं सकता कि आप कोवलम समुद्र तट न जांये। अगली बार वहीं चलेंगे।  

कोचीन-कुमाराकॉम-त्रिवेन्दम यात्रा
 क्या कहा, महिलायें वोट नहीं दे सकती थीं।। मैडम, दरवाजा जोर से नहीं बंद किया जाता।। हिन्दी चिट्ठकारों का तो खास ख्याल रखना होता है।। आप जितनी सुन्दर हैं उतनी ही सुन्दर आपके पैरों में लगी मेंहदी।। साइकलें, ठहरने वाले मेहमानो के लिये हैं।। पुरुष बच्चों को देखे - महिलाएं मौज मस्ती करें।। भारतीय महिलाएं, साड़ी पहनकर छोटे-छोटे कदम लेती हैं।। पति, बिल्लियों की देख-भाल कर रहे हैं।। कुमाराकॉम पक्षीशाला में।। क्या खांयेगे - बीफ बिरयानी, बीफ आमलेट या बीफ कटलेट।। आखिरकार, हमें प्राइवेट और सरकारी होटल में अन्तर समझ में आया।। भारत में समुद्र तट सार्वजनिक होते हैं न की निजी।। रात के खाने पर, सिलविया गुस्से में थी।। मुझे, केवल कुमारी कन्या ही मार सके।। आपका प्रेम है कि आपने मुझे अपना मान लिया।। आप,  टाइम पत्रिका पढ़ना छोड़ दीजिए।। पति, पत्नी के घर में रहते हैं।।

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4 comments:

  1. रोचक सामग्री, अच्छा लगा पढकर।
    एक बात कहना चाहूंगी, आपकी ब्लॉग में पोस्ट के इर्द गिर्द अन्य सामग्री इतनी अधिक रहती है कि कमेंट आप्शन खोजना मुश्किल हो जाता है।
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    शानदार रही लखनऊ की ब्लॉगर्स मीट
    नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।

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  2. बहुत दिनों बाद आपका चिठ्ठा पढा, उसका भी कारण यह था कि गनू लिन्क्स पर एक श्रंखला लिख रहा था -- कल्किआन हिंदी के लिये -- तो सोचा देखू यहाँ कुछ हो तो उसका भी उल्लेख कर दूँ। इस चिठ्ठे मे वह घर-जमायी वाली बात रोचक लगी। जटिल है यह समझना कि यह पुरूष प्रधान समाज की जडे कहाँ से निकली -- यहाँ जर्मनी मे तो मुझे कोई भेद दिखा नहीं। खैर पूरा का पूरा यात्रा वृतांत ही रोचक था। अब आता रहूँगा। शुभ रात्रि.
    स्वप्निल भारतीय
    सम्पादक: कटोण्डा (http://katonda.com)
    सम्पादक मण्डल:कल्किआन हिंदी (http://hindi.kalkion.com)

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  3. अध्भुत वर्णन है यह ।

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आपके विचारों का स्वागत है।