कन्याकुमारी जाते समय हमें मालुम चला कि इसे कन्याकुमारी क्यों कहते हैं। इस चिट्ठी में इसी की चर्चा है।
एक दिन हम लोग त्रिवेन्द्रम से कन्याकुमारी के लिये चले। कन्याकुमारी पहुंचने में लगभग ढाई घन्टे का समय लगता है। रास्ते में, एक टूरिस्ट गाइड खरीदी। इसमें कन्याकुमारी का यह नाम क्यों पड़ा, इसकी कथा इस तरह से बतायी गयी है।
कहा जाता है कि बाणासुर नामक दैत्यों का राजा था उसने ब्रह्मा जी की पूजा कर उनसे अमृत देने का वर मांगा। ब्रह्माजी ने कहा,
'अमृत तो नहीं मिल सकता है पर जिस तरह से तुम अपनी मृत्यु चाहते हो वह मांग सकते हो।‘इस पर उसने कुमारी कन्या से ही मृत्यु मांगी। वह सोचता था कि कोई भी कुमारी कन्या उसे नहीं मार सकती है।
इसके पश्चात बाणासुर, देवताओं को तंग करने लगा। तंग होकर, देवताओं ने भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी से सहायता की गुहार लगायी। उन्होंने उन्हें पराशक्ति, जो कि देवी पार्वती का ही एक रूप हैं, की पूजा करने को कहा। ब्रह्मा जी के वर के कारण वे ही बाणासुर से मुक्ति दिला सकती थीं। देवताओं की पूजा से प्रसन्न हो कर, देवी पराशक्ति ने, बाणासुर को मारने का वायदा किया। उन्होंने कुमारी कन्या के रूप में जन्म लिया।
कन्याकुमारी में विवेकानन्द रॉक मेमोरियल से समुद्र का दृश्य
‘भगवन आपकी शादी का शुभ मुहूर्त सुबह के पहले है। इसलिए वह सुबह के पहले ही शादी करें।‘शिवजी अपनी बारात लेकर सुचीन्द्रम नामक जगह पर रूके। सुबह के पूर्व उनके बारात लेकर शादी के लिए निकलने के पहले ही, नारद जी ने मुर्गे का रूप धारण करके बांग देना शुरू कर दिया। जिससे उन्हें लगा कि सुबह हो गयी है और महूर्त नहीं रहा। इसलिए वे शादी के लिए नहीं गये।
कहा जाता है कि कुमारी कन्या की जब शादी नहीं हो पायी तो उसके सारे गहने और जेवरात रंग बिरंगे पत्थरों में बदल गये, जो कि इस समय भी कन्याकुमारी के समुद्र तट पाये जाते हैं।
बाणासुर को, कुमारी कन्या की सुंदरता के बारे में पता चला। उसने उनसे शादी करने की इच्छा प्रकट की जिसे, उन्होंने मना कर दिया। बाणासुर, उन्हें बलपूर्वक जीतकर उनसे शादी करनी चाही। इस पर दोनो के बीच युद्घ हुआ और बाणासुर मारा गया । इस तरह से उस अत्याचारी की मृत्यु हुयी। इसलिये इस जगह का नाम कन्याकुमारी पड़ा।
इस कहानी में मुझे कुछ संशय लगता है। जहां तक मुझे मालुम है बाणासुर बालि का पुत्र था और भगवान शिव का भक्त। उसने वर के रूप में ऐसे योद्दा से युद्ध करने की इच्छा प्रगट की थी जो उसे हरा सके। उसे भगवान कृष्ण ने पराजित किया। बाद में वह हिमालय में भगवान शिव की तपस्या करने चला गया। मुझे कन्याकुमारी में बाणासुर की कथा, महिसासुर और देवी दुर्गा कहानी का दूसरा रूप लगता है।
सुचीन्द्रम में, सुचीन्द्र मन्दिर है। यह शिव जी का मंदिर है हालांकि इसमें ब्रम्हा और विष्णु जी की भी मूर्ति है। यहां पर गणेश जी की पत्नी की भी मूर्ति है।
सुचीन्द्र मन्दिर का चित्र विकिपीडिया से
कहा जाता है जिस चट्टान पर एक टांग से खड़े होकर कुमारी कन्या ने अपनी पूजा की, वहां पर उसका एक निशान बना हुआ है। स्वामी विवेकानंद उस निशान को देखने के लिए वहां गये जिससे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। इसी चट्टान पर विवेकानंद रॉक मेमोरियल बना हुआ है। यह जगह देखने लायक है। कन्याकुमारी में, देवी कुमारी मन्दिर भी है।
कोचीन-कुमाराकॉम-त्रिवेन्दम यात्रा
क्या कहा, महिलायें वोट नहीं दे सकती थीं।। मैडम, दरवाजा जोर से नहीं बंद किया जाता।। हिन्दी चिट्ठकारों का तो खास ख्याल रखना होता है।। आप जितनी सुन्दर हैं उतनी ही सुन्दर आपके पैरों में लगी मेंहदी।। साइकलें, ठहरने वाले मेहमानो के लिये हैं।। पुरुष बच्चों को देखे - महिलाएं मौज मस्ती करें।। भारतीय महिलाएं, साड़ी पहनकर छोटे-छोटे कदम लेती हैं।। पति, बिल्लियों की देख-भाल कर रहे हैं।। कुमाराकॉम पक्षीशाला में।। क्या खांयेगे - बीफ बिरयानी, बीफ आमलेट या बीफ कटलेट।। आखिरकार, हमें प्राइवेट और सरकारी होटल में अन्तर समझ में आया।। भारत में समुद्र तट सार्वजनिक होते हैं न की निजी।। रात के खाने पर, सिलविया गुस्से में थी।। मुझे, केवल कुमारी कन्या ही मार सके।।हिन्दी में नवीनतम पॉडकास्ट Latest podcast in Hindi
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कन्याकुमारी के बारे में काफी महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है..धन्यवाद
ReplyDeleteजानकारी पूर्ण आलेख है।आभार।
ReplyDeleteभारत में अनेक कथाएँ अनेक रूपों में प्रचलित हैं। कथा वही रहती है पात्रों के नाम बदल जाते हैं।
ReplyDeleteदरअसल सारी कहानियां एक दुसरे की फोटो कॉपी ही होती है परिवेश के अनुसार चोला बदल कर.
ReplyDeleteआज चित्र अच्छे रेजल्युसन में हैं ..धन्यवाद :-)
कहानियाँ ऐसे ही जन्म लेती है जैसे राम कथा के भी अलग अलग रूप है यह इतिहास नही है कथा और इतिहास मे फर्क होता है ।
ReplyDeleteआप किस आधार पर राम कथा को इतिहास नही मानते।
Deleteकथा के रूप में भी इतिहास लिखा जा सकता है।
अगर आप अपनी बात खुलकर लिखें तो अच्छा होगा ज्ञान प्राप्त होगा।
सम्पर्क करे व्हाट एप नम्बर।
9422114835।
दुर्गाशंकर सराफ।
कामठी।
नागपुर।
बेहतरीन जानकारी दी..आपने कुछ बरसों पहले की मेरी कन्याकुमारी की यात्रा याद दिलाई.
ReplyDeleteज्यादातर मिथकों का कोई सिर पैर तो होता नहीं ! मगर आपका कहना
ReplyDeleteदुरुस्त है बाणासुर का संहार कृष्ण ने किया था !
कन्याकुमारी की खासियत यही है की वहां आदि शक्ति कुमारी ही रह गयीं
विवाहित सती के परित्याग के शिव संकल्प की कथा को तो बहुत सुना गया है
मगर यहाँ आदि शक्ति का चिर कुमारी रह जाना मन में कई सवाल उठाता है !
फिर शिव तो कैलाश वासी थे -वहां कन्याकुमारी कैसे पहुँच गये ?
मतलब की मानव प्रवासऔर विस्थापन के साथ कथाएं भी दक्षिणोन्मुखी होती गयीं !
पौराणिक कथाओं के अनेक रूप पाये जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि अलग अलग समय में अलग अलग लोगों ने इनमें अपने हिसाब से हेर फेर कर दिया है।
ReplyDeleteजानकारी मिली.
ReplyDeleteआपके साथ कन्याकुमारी की सैर हमने भी कर ली
ReplyDeleteBanasur was never killed, even SHIVPURAN says that since MAHADEV had promised him(boon) that he will be there always to protect banasur so he was forgiven by KRISHNA as the motive of war was to teach him a lesson not to kill him. For Mata Parvati banasur too was like Ganesh and Kartik.. , also BANASUR is now worshipped as a DEVTA(baneshwar Mahadev) in many parts of India as he was one of the biggest Devote of lord Shiva.
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