Monday, November 01, 2021

पुस्तकें पढ़ना औेर भेंट करना - सबसे उम्दा शौक़

इस चिट्ठी में, मेेरे बाबा के सबसे प्रिय शौक – पुस्तकें पढ़ना और पुस्तकें भेंट करना - की चर्चा है। 

रूबी दादा को, बाबा की भेंट की गयी पुस्तक

तुम्हारे बिना
।। 'चौधरी' ख़िताब - राजा अकबर ने दिया।। बलवन्त राजपूत विद्यालय आगरा के पहले प्रधानाचार्य।। मेरे बाबा - राजमाता की ज़बानी।। मेरे बाबा - विद्यार्थी जीवन और बांदा में वकालत।। बाबा, मेरे जहान में।। पुस्तकें पढ़ना औेर भेंट करना - सबसे उम्दा शौक़।।  मेरे नाना - राज बहादुर सिंह।। बसंत पंचमी - अम्मां, दद्दा की शादी।। अम्मां - मेरी यादों में।।  दद्दा (मेरे पिता)।। नैनी सेन्ट्रल जेल और इमरजेन्सी की यादें।। RAJJU BHAIYA AS I KNEW HIM।। रक्षाबन्धन।। जीजी, शादी के पहले - बचपन की यादें ।  जीजी की बेटी श्वेता की आवाज में पिछली चिट्ठी का पॉडकास्ट।। दिनेश कुमार सिंह उर्फ बावर्ची।। GOODBYE ARVIND।।

बाबा के कई शौक़ थे - खेल-कूद, विज्ञान के बारे में बात करना, बच्चों के साथ समय बिताना, महिलाओं की शिक्षा और उनका सशक्तिकरण परन्तु उनका सबसे प्रिय शौक़ था - पुस्तकें पढ़ना और भेंट करना। 

बाबा ने अपनी सारी बहुओं को, शादी पर शरतचन्द्र और प्रेमचन्द की सारी पुस्तके भेंट की और उन्हें आगे पढ़ने के लिये प्रोत्साहित किया। मेरी मां की पढ़ाई के बारे में तो, यहां चर्चा है। 

१९५० के दशक में, मेरे एक चाचा विदेश चले गये थे। वे तभी से, बाबा के लिये अमेरिकन रीडर्स डाईजेस्ट और नेशनल जिऔग्रफिक मैगाज़ीन भेजा करते थे। 

रीडर्स डाइजेस्ट के प्रकाशक, उपन्यासों को संक्षिप्त कर, पुस्तकें छापा करते थे। बाबा के पास यह सारी पुस्तकें थीं। उनके पास हिन्दी का विश्वकोश भी था। बाद में, इन सबको, मैं अपने साथ इलाहाबाद ले आया था। 

कुछ दिन पहले, लखनऊ विश्विद्यालय के भौतिकी विभाग के अवकाश प्राप्त प्रोफेसर, राजनरायण सिंह (हमारे लिये रूबी दादा) का एक सन्देश मेरे पास आया कि लगभग, ७० साल पहले, मेरे बाबा ने, उन्हें एक पुस्तक भेंट की थी और वे इसे मेरे पास भेजना चाहते हैं ताकि, मैं उसे अपने बेटे के पास, उसकी बेटी के पढ़ने के लिये भेज दूं। 

रज्जू भैइया {(राष्ट्रीय स्वयं संघ के चौथे सर संघचालक) (हमारे लिये बड़े चाचा जी)} के परिवार के साथ, हमारे पारवारिक संबन्ध हैं। उनकी दूसरे नंबर की बहन, चन्द्रा बुआ जी की शादी, डा. आर वी सिंह (प्रधानाचार्य लखनऊ मेडिकल कॉलेज और बाद में, कुलपति लखनऊ विश्वविद्यालय), से हुई थी। रूबी दादा, उन्हीं के पुत्र हैं। 

रूबी दादा ने, सीनियर कैम्रिज की परीक्षा में, न केवल पांच पॉइन्ट हासिल किये थे पर उस परीक्षा में विश्व में, प्रथम स्थान भी प्राप्त किया था। इन्टर की परीक्षा में भी, वे मेरिट लिस्ट में थे। 

लखनऊ विश्विविद्यालय की, स्नातक (विज्ञान) और परास्नातक (भौतिक शास्त्र) की शिक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने के बाद, मैकगिल विश्वविद्यालय से सैद्धांतिक भौतिकी पर डाक्टरेट हासिल की। उनके विद्यार्थी (जिसमें मेरी पत्नी भी शामिल हैं), उन्हें लखनऊ विश्वविद्यालय के बेहतरीन शिक्षक के रूप में याद करते हैं। 

मेरे बेटे ने, जब आईआईटी के प्रवेश की परीक्षा देने का निश्चय किया, तब उसे कस्बे में कोई अच्छा भौतिक शास्त्र पढ़ाने वाला नहीं मिल पाया। वह लखनऊ चला गया। गणित की मुश्किलों में उसकी नानी और भौतिक शास्त्र में रूबी दादा - ने सहायता की। उसका भी कहना है कि रूबी दादा का भौतिक शास्त्र में ज्ञान और अवधारणा एकदम स्पष्ट है और पढ़ाने का ढंग लाजवाब। 

१९५० के दशक में, मेरे बाबा का ऑपरेशन, लखनऊ में हुआ था। इस सिलसिले में मेरे बाबा एक सप्ताह, उनके यहां रहे थे। उस समय, बाबा कोई ६५ साल के और रूबी दादा १२-१३ साल के थे। दिन के समय, फूफा जी मेडिकल कॉलेज चले जाते थे और चन्द्रा बुआ जी घर के काम में व्यस्त रहती थीं। इस कारण, उन दोनो ने, काफी समय साथ गुजारा। 

रूबी दादा के अनुसार, बाबा विद्वान थे लेकिन दूसरे उम्रदार लोगों की तरह से नहीं थे। वे बच्चों से बात करना पसन्द करते थे और उनसे विज्ञान की चर्चा करते थे। 

बाद में, बाबा ने, रूबी दादा को साहसिक कार्यों में रुचि जगाने के लिये, थूर हायरडॉह्ल की लिखी पुस्तक 'कॉन टिकी एक्सपडीशन' भेंट की थी। 

रूबी दादा चाहते थे कि मैं इस पुस्तक को, अपने बेटे के पास, उसकी बेटी को पढ़ने के लिये भेज दूं। मेरे हांमी भरने पर, उन्होंने यह पुस्तक मेरे पास, अपने पत्र के साथ भेज दी। 

पुस्तक में मेरे बाबा की हस्तलिपि और रूबी दादा का पत्र

यह उपन्यास, रीडर्स डाइजेस्ट की संक्षिप्त किये गये उपन्यासों की पुस्तकों में भी निकला था। मैंने यह उपन्यास वहीं पढ़ा था परन्तु, रूबी दादा की भेजी पुस्तक, हमारे लिये अनमोल है। जब मैंने इस बात को अपनी पत्नी से बताया,  तो उसने कहा, 

"लगता है कि तुम्हारे बाबा भी, तुम्हारी तरह, उपहार में पुस्तकें देने के शौकीन थे।" 

उसकी बात सुन कर, मेरी मुस्कराहट न रुक सकी। उसने मुस्कुराने का कारण जानना चाहा। इस पर मैंने उसे आइज़ैक एज़िमॉफ (अंग्रेजी में यहां) के मां की, एक घटना बतायी। 

आइज़ैक एज़िमॉफ, जूल्स वर्ने के बाद, सबसे महानतम विज्ञान कहानी लेखक थे और पिछली शताब्दी में विज्ञान को लोकप्रिय बनाने में सबसे अधिक योगदान दिया है। उनका जन्म, रूस में हुआ था। उनके जन्म के तीन साल के अन्दर, उनके माता-पिता अमरीका चले गए और वहां कैन्डी (मिठाई) की दुकान चलाने लगे। 

आइज़ैक की मां रूसी और यिडिश लिख सकती थीं; वे अंग्रेजी पढ़ सकती थी लेकिन लिख नहीं पाती थीं: इसलिए कैन्डी स्टोर से अवकाश लेने पर, लिखना सीखने के लिये, एक कोर्स में दाखिला ले लिया। 

वे, जल्द ही, अच्छा लिखने लगीं। एक दिन, उनके शिक्षक ने पूछा कि क्या वे आइज़ैक एज़िमॉफ (अंग्रेजी में यहां) की रिश्तेदार हैं? उनके यह बताने पर कि वे उसकी मां हैं, प्रशिक्षक ने कहा, 

"आश्चर्य नहीं, आप इतनी अच्छा लिख रही हैं।” 

आइज़ैक की मां, वंशाणु (जीन) के एक-तरफा प्रवाह से अच्छी तरह वाकिफ थीं। वे चार फुट दस इन्च की थीं। शिक्षक की बात सुन कर, वे पूरी उंचाई पर तन कर खड़ी हो कर बोली, 

"सर, मैं आपसे माफी चाहूंगी। लेकिन, आश्चर्य नहीं है कि आइज़ैक एक अच्छा लेखक हैं।'' 

बाबा, मेरी तरह नहीं, बल्कि मैं अपने बाबा की तरह हूं 😀

मेरे पुराने परिचत लोग, अक्सर मेरी पत्नी को यह बताते नहीं थकते कि उन्होंने मेरी भेंट की गयी पुस्तक, अपने पास, अभी भी संभाल कर रखी है और मैंने उस पर, उनके लिये क्या लिखा है। 

मुझे ईसाईयों का त्योहार, बड़े दिन की एक बात बहुत अच्छी लगती है - एक दूसरे को उपहार देना। 

मुसलमानों और हिन्दुओं में भी ईद और दिवाली पर भेंट देने का रिवाज़ है पर अधिकतर, यह मेवे और मिठाई तक ही सीमित रहता है। 

दीवाली पर काम करने वालों को कपड़े भी दिये जाते हैं। शायद, यह ठीक है क्योंकि उन्हें इसकी जरूरत है। 

फिर भी, क्या अच्छा हो कि हम बच्चों को, खास तौर से अपने साथ काम करने वाले लोगों के बच्चों को, पुस्तकें भेंट करे - खास तौर वे पुस्तकें, जिन्होंने हमारे जीवन पर असर डाला हो। शायद, यह उनके जीवन में नया मोड़ दे, दे। 

इस दिवाली - पुस्तक देने की बारी।

About this post in Hindi-Roman and English

Hindi (Devanagr script) kee is chitthi mein, mere baba ke sabse priya Shok pustake pdhna aur bhent karne kee charchaa hai.  ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi mein  padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

This post in Hindi (Devanagari script) is about my grandfather's favourite hobby - reading books and presenting them. You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.

सांकेतिक शब्द
। Culture, Family, Inspiration, life, Life, Relationship, जीवन शैली, समाज, कैसे जियें, जीवन, दर्शन, जी भर कर जियो,
#हिन्दी_ब्लॉगिंग #HindiBlogging
#KeshavChandraSinghChaudhary #DiwaliPresents

5 comments:

  1. इस दीपावली मैं आपको विज्ञान की एक किताब भेजना चाहता हूँ कृपया अपना डाक पता देने का कष्ट करें।

    धन्यवाद...

    ReplyDelete
    Replies
    1. अज़ीज जी
      पुस्तक भेंट करने के लिये धन्यवाद।
      लेकिन यदि कोई विज्ञान की पुस्तक भेंट करने के लायक है तो वह मेरी अवश्य पढ़ी होगी या मेरे पुस्कालय में, नयी पुस्तकों के साथ होगी, जिसे अभी पढ़ना होगा। भेंट की हुई कोई पुस्तक या वस्तु, किसी अन्य को देना अनुचित हगा और मैं अपनी पढ़ी पुस्तक किसी को देना नहीं चाहता, क्योंकि मेरे उसमें निशान लगे होते हैं।
      फुस्तक भेंट करने के कई अनलिखित नियम होते हैं। इनमें से कुछ इस तरह के हैं।
      १- पुस्तक उसे भेंट की जानी चाहिये, जिसे आप जानते हों; आपको मालुम हो कि वह पुस्तक उसके पास नहीं है; और वह पुस्तक उसे आगे बढ़ने के लिये प्रोत्साहित करेगी। यदि आपने ऊपर की चिट्ठी पढ़ी होगी तो आपने समझा होगा कि मेरे बाबा ने जिसे पुस्तक दी वह बहुत छोटे थे।
      २- हमेशा वह पुस्तक भेंट करें जो आपने पढ़ी हो तभी आप जान सकेंगे कि जिसे आप पुस्तक दे रहे हैं यह उसके काम की है अथवा नहीं। मैं भी पुस्तकें जिन्हें देता हूं वे मुझसे कम उम्र कर लोग हैं, जिन्हें उस पुस्तक ने कुछ न कुछ सहायत की। मेरी मुलाकात एक बार लीसा से वियना में हुई थी जिस मैंने पुसतकें भेजी थी। इसकी चर्चा मैंने यहां की है।
      ३- यदि आपसे कोई व्यक्ति, पढ़ने के लिये कोई ऐसी पुस्तक मांगे, जिसे आपने न पढ़ा हो, तो आप जरूर खरीद के दे सकते हैं। मेरे पास बहुत से विद्यार्थी, नवयूवक आते हैं जो इस श्रेणी के होते हैं। वे पैसों के अभाव से पुस्तकें खरीद नहीं सकते। मैं उन्हें खरीद कर भिजवा देता हूं। मेरे साथ काम करने वालों के बच्चे भी इसी श्रेणी में हैं। उनकी पुस्तकें और खिलौने, मैं ही खरीदता हूं।
      ४- अपनी लिखी पुस्तक किसी को भेंट नहीं करना चाहिये जब तक वह व्यक्ति आपसे मांगे नहीं।
      ५- परन्तु आदर भाव में, आप किसी प्रख्यात व्यक्ति को, अपनी लिखित पुस्तक भेंट कर सकते हैं। लेकिन यह हमेशा उसके यहां जा कर देना चाहिये, अन्यथा नहीं।

      Delete
  2. महापुरुषों को समझना, ज्ञान, भाव, विस्तृत जानकारी एवम रुचि किताब से ही संभव है।अध्ययन के लिए किताब से उपयुक्त विकल्प नहीं हो सकता.

    ReplyDelete
  3. किताबों से अच्छा कोई मित्र और साथी नही है। यति के यहां 1964में पहली बार रीडर डाइजेस्ट पढ़ी थी और तब से नियमित आज तक पढ़ रहा हूं। लिखने का चस्का लगा तो एक व्यंग्य संग्रह भाग एक 2021में विमोचित हो चुका है और दूसरे भाग की तईयारी चल रही है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. यह टिप्पणी, बांदा के, कैलाश मेहरा की है।

      Delete

आपके विचारों का स्वागत है।