Tuesday, December 28, 2021

चौधरी का चांद हो

ममता बहन और ज्ञानू जीजा जी

डा. ममता सिंह, मोती लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज इलाहाबाद में, प्रोफेसर थीं। इस चिट्ठी में, जीजी को याद कर रही हैं।

तुम्हारे बिना
।। 'चौधरी' ख़िताब - राजा अकबर ने दिया।। बलवन्त राजपूत विद्यालय आगरा के पहले प्रधानाचार्य।। मेरे बाबा - राजमाता की ज़बानी।। मेरे बाबा - विद्यार्थी जीवन और बांदा में वकालत।। बाबा, मेरे जहान में।। पुस्तकें पढ़ना औेर भेंट करना - सबसे उम्दा शौक़।। सबसे बड़े भगवान।। जब नेहरू जी और कलाम साहब ने टायर बदला।।  मेरे नाना - राज बहादुर सिंह।। बसंत पंचमी - अम्मां, दद्दा की शादी।। अम्मां - मेरी यादों में।।  दद्दा (मेरे पिता)।।My Father - Virendra Kumar Singh Chaudhary ।।  नैनी सेन्ट्रल जेल और इमरजेन्सी की यादें।। RAJJU BHAIYA AS I KNEW HIM।। मां - हम अकेले नहीं हैं।।  रक्षाबन्धन।। जीजी, शादी के पहले - बचपन की यादें ।।  जीजी की बेटी श्वेता की आवाज में पिछली चिट्ठी का पॉडकास्ट।। चौधरी का चांद हो।।  दिनेश कुमार सिंह उर्फ बावर्ची।। GOODBYE ARVIND।।

टी राठौर, इलाहाबाद उच्च न्यायालय में फौजदारी के जाने-माने वकील थे। डा. ममता सिंह उनकी बेटी हैं। वे पेशे से डाक्टर हैं और मोती लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर रहीं। उनकी और मेरी मां बांदा से थीं। इसलिये वे मेरी मां को, बिट्टी मौसी बुलाती हैं। हमारा और उनका रिश्ता भाई-बहन का है।

ममता बहन जोशीली हैं और बात करने में निपुण। उनसे बात कर जीवन को नये तरीके से देखने और जीने का उत्साह आता है। अम्मा के जाने बाद, दद्दा अक्सर निराशा और अवसाद में डूब जाते थे। वे घर आती और दद्दा को वापस पटरी पर लातीं। 

जीजी, ममता बहन से दो साल सीनियर थीं। इसलिये, ममता बहन, उन्हें जया जीजी बुलाती हैं। १९५० के दशक में, इलाहाबाद में लड़कियों को विज्ञान पढ़ने के लिये केवल क्रॉस्थ्वेट इन्टर कॉलेज ही था। जीजी विज्ञान पढ़ना चाहती थीं इसलिये वहीं दाखिला की बात तय की गयी। 

ममता बहन के अनुसार उनका कोई सपना नहीं था पर उनकी मां चाहती थी कि बेटी डाक्टर बने इसलिये उन्होंने डाक्टर बनने की ठानी।

एक दिन अम्मा और ममता बहन की मां मिले तब अम्मा ने उनसे जीजी का क्रॉस्थ्वेट इन्टर कॉलेज में दाखिला की चर्चा की। इसी कारण, उनका  भी दाखिला वहीं करवा दिया गया। १९५७ में, जीजी ने नौवीं में और ममता बहन ने सातवीं में, दाखिला लिया। वे कहती हैं कि

जया जीजी, घर से रिक्शे से चलतीं, उन्हें लेती फिर वे साथ-साथ रिक्शे पर  क्रॉस्थ्वेट पढ़ने जाते। जया जीजी को फिल्में देखने का शौक था। वे हर फिल्म देखती और पापा मुझे कोई फिल्म नहीं देखने देते थे। रास्ते भर वे मुझे फिल्मों की कहानी सुनाती जाती। हम लोगों का रास्ता आराम से कटता। परेशानी तो हमारे कुछ बड़े होने पर शुरू हुई। 

रास्ते में लड़कों के दो स्कूल मिलते थे - सीऐवी और जीआईसी। वहां से लड़के साईकिल से हमारे रिक्शे के पीछे लग जाते थे। जया जीजी बहुत सुन्दर थीं। लड़के उन्हें ही तंग करते थे। वे तरह तरह की टिप्पणियां और उन्हें हाथ से छूने की कोशिश करते थे।

मैंने उन्हें, बीच में बैठने को कहा। मैं बस्ते से स्टील का रूलर निकाल कर, उन लड़कों को मारती थी, जो रिक्शे या जया जीजी को छूने की कोशिश करते थे। एक बार मैंने रिक्शा रोक कर, लड़कों को दौड़ा कर मारना शुरू किया। जया जीजी बोली

'ममता क्या कर रही हो रिक्शे पर बैठो। मुझे लड़कों से कम, तुमसे ज्यादा परेशानी हो रही है।'

मैंने पहले विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय के पुस्तकाललय की चर्चा की थी। ममता बहन भी वहां जाने के किस्से सुनाती हैं। जीजी अपने नाम के बाद चौधरी लिखती थीं। इस बारे में बताती हैं, 

मैं जब पहली बार विश्वविद्यालय में,  विज्ञान के पुस्तकालय में गयी। तो पहली पुस्तक उठायी, तो उसमें लिखा था।
'चौधरी का चांद हो, या आफताब हो,
जो भी हो तुम खुदा की कसम, लाजवाब हो।'
नीचे किसी और लिखावट में लिखा था
'घमंडी है।'
मैंने भी लिख दिया।
'अंगूर खट्टे हैं।'
जया जीजी बोली, क्यों लिख दिया, लड़के तुम्हें परेशान करेंगे,
'मैंने कहा, चिन्ता मत करो, कौन हैन्डराइटिंग मिलवा रहा है।'
स्कूल की कुछ और यादें बताती हैं

मैं अपना खाना तो पहले पीरियड में खा लेती थी और लंच समय पर खेलती रहती थी। जया जीजी को लगता था कि मैं कुछ खाती नहीं हूं इसलिये लंच पर बुला लेती थीं। बिट्टी मौसी, जया जीजी के लिये आलू के पराठे और आचार भेजती थीं। फिर हम मिल कर खाना खाते थे। जब बिट्टी मौसी को पता चला कि जया जीजी मेरे साथ अपना खाना शेयर करती हैं तब उन्होंने दो टिफिन भेजना शुरू किया।
बीती बातों को याद कर, ममता बहन कहती हैं,
कौन कहता है कि खून के ही रिश्ते पक्के होते हैं प्रेम की डोर तो किसी के साथ भी बंध सकती है।

जया जीजी के साथ बिताये दिन भी क्या दिन थे।

ममता बहन आपको सलाम, आपके साथ समय गुजारना बाते करना, सुखद अनुभव है।

सच है, प्रेम की डोर ही, पक्की डोर है। 

मोहम्द रफी का गाया वह गीत सुनिये, जिस पर टाइटिल दिया गया था।

About this post in Hindi-Roman and English

is chitthi mein, doctor mamta Singh, jijee kee yadon ko taja ker raheen hain. yeh hindi (devnaagree) mein hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi mein  padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

In this post Dr. Mamta Singh is sharing her memories about Jijee. It is in Hindi (Devanagari script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.

सांकेतिक शब्द
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2 comments:

  1. Wonderful memories of Jaya Jiji! Thoroughly enjoyed reading the experiences, as they came to life in front of my eyes! Thank you for sharing, Yati Dada.

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  2. It is wonderful to know about Ma from people who have been in her life from before we were born. Thanks Mamta mausi and thank you Mamaji.

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