Saturday, April 28, 2007

व्यक्ति शब्द पर भारतीय निर्णय और क्रॉर्नीलिआ सोरबजी

इस चिट्ठी में व्यक्ति शब्द पर अपने देश में हुऐ निर्णयों और क्रॉर्नीलिआ सोरबजी के बारे में चर्चा है।
 
क्रॉर्नीलिआ सोरबजी का यह चित्र लिंकनस्  इन की इस पोस्ट से है

Wednesday, April 25, 2007

अंकल तो बच्चे हैं

गोवा से अपने कसबे पंहुचने के लिये, हमें पहले हवाई जहाज से फिर ट्रेन की यात्रा करनी थी। एयरपोर्ट से रेलवे स्टेशन पंहुंचने समान्यतः ४५ मिनट का समय लगता था। हवाई जहाज के पहुंचने तथा ट्रेन के चलने में ३ घंटे का समय था। हमारे विचार से यह काफी था और आराम से ट्रेन पकड़ सकते थे। गोवा एयरपोर्ट पर हवाई जहाज की फ्लाइट फिर से निर्धारित कर, ढ़ाई घन्टा देर से उड़ी। हम लोग कुछ तनाव में आ गये, लगा कि कहीं गाड़ी न छूट जाये।

हवाई जहाज में उड़ते समय विमान परिचारिका ने उद्घोषणा की, कि अन्तरराष्ट्रीय नियम के अनुसार, उड़ते तथा उतरते समय,
  • खिड़की के शटर खुले रखें;
  • हवाई जहाज के अन्दर की रोशनी बन्द कर दी जायगी।
शटर इसलिये खुले रखे जाते हैं कि यदि कोई बाहर दुर्घटना हो तो वह दिखायी पड़ जाय पर मुझे यह नहीं मालुम था कि हवाई जहाज के अन्दर की रोशनी क्यों बन्द कर दी जाती है। मैंने परिचारिका को बुलाने वाला बटन दबाया। वह कुछ देर बाद आयी तब तक मैं The Economics Times में ढूब चुका था। एक मीठी अवाज, बनावटी मुस्कराहट के साथ, सुनायी पड़ी,
'May I help you, Sir'
मैंने अखबार से नजर उठाते हुऐ कहा,
'मुझे अंग्रेजी कम समझ में आती है क्या हम हिन्दी में बात कर सकते हैं।'
उसने The Economics Times की तरफ कड़ी नजर डाली, फिर मुस्करायी। इस बार मुझे उसकी मुसकराहट बनावटी नहीं लगी। मुझे तो वह बिलकुल अपने मुन्नी जैसी लगी। उसकी मुस्कराहट जैसे कह रही हो, कि पापा तुम्हें तो झूट बोलना भी नहीं आता पर उसने मुस्करा कहा कि,
'अंकल मुझे भी हिन्दी अच्छी लगती है पर क्या करूं यहां पर अंग्रेजी बोलने को कहा जाता है।'
वह काफी देर तक बतियाती रही। बिलकुल वैसे ही जैसे कि मुन्नी अक्सर लड़ियाती है। उसने मुझे बताया कि परिचारिका की ट्रेनिंग में क्या क्या सिखाया जाता है और यह भी बताया कि,
'हवाई जहाज के अन्दर की रोशनी इसलिये बन्द कर दी जाती है कि दुर्घटना हो और बहर जाना पड़े तो आंखे न चौधियाऐं।'
मेरे उसे यह बताने पर कि मुझे न केवल उड़ान के बारे में पर शायद जीवन में उन सब बातों में रुचि है जो मुझे नहीं मालुम हैं पर वह मुन्ने की मां से बोली,
'दीदी, अंकल तो बच्चे हैं।'
वह नये युग की थी। जानती थी कि, अब किसी भी महिला को आंटी नहीं कहा जाता है केवल दीदी या भाभी।

एयरपोर्ट में मेरे सहयोगी ने अपनी कार ड्राईवर के साथ भेजी थी। कार में बैठने और ट्रेन छूटने में केवल ३० मिनट शेष था। ड्राईवर बहुत कुशल था। उसने हमें केवल २९ मिनट में रेवले स्टेशन पंहुचाया। मैं लैपटॉप लेकर प्लेटफॉर्म पर डिब्बे के सामने पहुंचा तो ट्रेन ने चलना शुरू कर रही थी। मैं तो चढ़ गया। मुन्ने की मां एक हाथ में पर्स और दूसरे हाथ में एक हैण्ड बैग पकड़े थी। चढ़ते समय उसका पैर फिसला, पर उसका पैर वापस प्लेटफॉर्म पर। मैंने उससे बैग लिया और दूसरे हाथ से उसे ट्रेन में चढ़ने में सहायात की। समान भी और लोगों ने चलती ट्रेन में चढ़ाया।

कुछ देर बाद समान ठीक से रख कर मैंने उससे कहा कि वह हैण्ड बैग क्यों पकड़े थी कहीं वह वास्तव में ऊपर चली जाती तो। उसने कहा कि वह निश्चिंत थी कि वह चढ़ जायगी इसलिये उसने ट्रेन में चढ़ने का प्रयत्न किया। वह कुछ आगे और भी कह रही थी पर तब तक मेरा लैपटॉप खुल चुका था। मेरी उंगलियां गोवा की यात्रा का संस्मरण लिखने के लिये थिरकने लगी थीं। फिर भी मैंने उसे कहते हुऐ सुना,
'इतनी जल्दी मुझसे पल्ला झाड़ रहे थे। सुना नहीं था कि परिचारिका कह रही थी कि तुम बच्चे हो अभी तो तुम्हें २५ साल और देखना है जब तक बड़े न हो जाओ।'
मैंने उसकी बात अनुसुनी कर दी। २५ साल तो बहुत समय होता है, मेरे पास शायद केवल १० या १२ साल का समय है। बहुत कुछ करना है, इसीलिये मैं काफी हड़बड़ी में रहता हूं।

इसी कड़ी के साथ गोवा की यात्रानामा समाप्त होती है। हो सका तो अगली बार, मैं आपको कशमीर ले चलूंगा।


गोवा
प्यार किया तो डरना क्या।। परशुराम की शानती।। रात नशीले है।। सुहाना सफर और यह मौसम हसीं।। डैनियल और मैक कंप्यूटर।। चर्च में राधा कृष्ण।। मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती।। न मांगू सोना, चांदी।। यह तो बताना भूल ही गया।। अंकल तो बच्चे हैं

Monday, April 23, 2007

हमने जानी है जमाने में रमती खुशबू: भूमिका

कुछ समय पहिले मेरे चिट्ठे पर शायरी सुनायी पड़ती थी। न तो वह शायरी मेरी है और न ही यह आवाज। यह शायरी और आवाज वकाज़ मीर की है। मैंने इसे विज़टबॉक्स डाट कॉम से लोड किया था। इसे पुनः सुनने के लिये विज़िट डाट कॉम की दी गयी लिंक पर जा कर सुन सकते हैं।

मैं एक श्रंखला 'हमने जानी है रिश्तों में रमती खुशबू' नाम से शुरू कर रहा हूं। मुझे अंतरजाल पर विचरण करते समय यह शायरी सुनायी पड़ी। मुझे लगा कि यह इस श्रंखला की भूमिका के लिये उपयुक्त है। न केवल इस शायरी में पर इस आवाज में भी दर्द है, कुछ तड़पन, कुछ उदासी। इसी लिये मैंने इसे इस श्रंखला की भूमिका के लिये चुना। इसी दर्द के कारण, यह दिल को छू भी लेती है।

मैंने इस शायरी को ही इस श्रंखला के लिये क्यों चुना? क्या जमाने में दर्द ही है? क्या यही है रमती खुशबू? क्या यही है रिश्तों का अंजाम। क्या यह शायरी, इस श्रंखला का निचोड़ है, या फिर कुछ और। इस श्रंखला में न केवल हम इस पर बात करेंगे पर कुछ बात करेंगे रिश्तों पर और कुछ बात करेंगे प्यार की। अगली बार हम लोग चर्चा करेंगे उस उद्दरण की, उस पंक्ति की जो इस दर्द और मिठास के को सबसे बेहतर तरीके से जोड़ती है, इसे सबसे अच्छी तरह से व्यक्त करती है। उसी के साथ चर्चा करेंगे उस कविता की, जिससे वह उद्धरण लिया गया है और उस कवि की भी जिसने वह कविता लिखी है।


भूमिका।। Our sweetest songs are those that tell of saddest thought।। कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, बीते हुए दिन वो मेरे प्यारे पल छिन।। Love means not ever having to say you're sorry ।। अम्मां - बचपन की यादों में।। रोमन हॉलीडे - पत्रकारिता।। यहां सेक्स पर बात करना वर्जित है।। जो करना है वह अपने बल बूते पर करो।। करो वही, जिस पर विश्वास हो।। अम्मां - अन्तिम समय पर।। अनएन्डिंग लव।। प्रेम तो है बस विश्वास, इसे बांध कर रिशतों की दुहाई न दो।। निष्कर्षः प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो।। जीना इसी का नाम है।।

Saturday, April 21, 2007

अमेरिका तथा अन्य देशों के निर्णय – विवाद का अन्त: आज की दुर्गा

(आज चर्चा का विषय है व्यक्ति शब्द पर अमेरिका तथा अन्य देशों के निर्णय तथा इस विवाद का अन्त किस मुकदमे से हुआ। इसे आप सुन भी सकते हैं। सुनने चिन्ह ► तथा बन्द करने के लिये चिन्ह ।। पर चटका लगायें।)
women-empowerment-...


अमेरिका
अमेरिका तथा अन्य देशों में व्यक्ति शब्द की व्याख्या का इतिहास इंगलैंड से कुछ अलग नहीं था। अमेरिकी उच्चतम न्यायालय ने Bradwell Vs. Illinois (१८७३) में व्यवस्था दी है कि विवाहित महिलायें व्यक्ति की श्रेणी में नहीं हैं और वकालत नहीं कर सकतीं। इसके दो वर्ष बाद ही Minor Vs. Happier Sett के केस में अमेरिकी उच्चतम न्यायालय ने यह तो माना कि महिलाएं नागरिक हैं पर यह भी कहा कि वे विशेष श्रेणी की नागरिक हैं और उन्हें मत डालने का अधिकार नहीं हैं। अमेरिका में २१ वर्ष से ऊपर की महिलाओं को मत देने की अनुमति अमेरिकी संविधान के १९वें संशोधन (१९२०) के द्वारा ही मिल पायी।

दक्षिण अफ्रीका
इस विवाद के परिपेक्ष में, दक्षिण अफ्रीका का जिक्र करना जरूरी है। यहां पर इस तरह के पहले मुकदमे Schle Vs. Incoroporated Law Society (1909) , में महिलाओं को व्यक्ति शब्द में नहीं शामिल किया गया और उन्हें वकील बनने का हकदार नहीं माना गया। पर केपटाउन की न्यायालय ने १९१२ में माना कि महिलाएं 'व्यक्ति' शब्द में शामिल हैं और वकील बनने की हकदार हैं। कहा जाता है कि इस तरह का यह एक पहला फैसला था। लेकिन यह ज्यादा दिन तक नहीं चला। यह निर्णय अपीलीय न्यायालय द्वारा Incorporated Law Society Vs. Wookey (1912) में रद्द कर दिया गया । इस अपीलीय न्यायालय के फैसले का आधार यही था कि महिलाएं व्यक्ति शब्द की व्याख्या में नहीं आती हैं।

विवाद का अन्त
इस विवाद का अन्त कनाडा के एक मुकदमे Edwards Vs. Attorney General में हुआ। कनाडा के गर्वनर जनरल को सेनेट में किसी व्यक्ति को नामांकित करने का अधिकार था। सवाल उठा कि क्या वे किसी महिला को नामांकित कर सकते हैं। कैनाडा के उच्चतम न्यायालय ने सर्व सम्मति से निर्णय लिया कि महिलायें व्यक्ति शब्द में शामिल नहीं हैं। इसलिये वे नामित नहीं हो सकती हैं। इस फैसले के खिलाफ अपील में, प्रिवी कांऊसिल ने स्पष्ट किया है कि,
'व्यक्ति शब्द में स्त्री-पुरूष दोनों हो सकतें हैं और यदि कोई कहता है कि व्यक्ति शब्द में स्त्रियों को क्यों शामिल किया जाय तो जवाब है कि "क्यों नहीं"?'
लेकिन यह वर्ष १९२९ में हुआ। क्या यह पहला फैसला था। आइये देखें कि अपने देश में क्या हुआ - यह अगली बार।

आज की दुर्गा
महिला दिवस|| लैंगिक न्याय - Gender Justice|| संविधान, कानूनी प्राविधान और अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज।। 'व्यक्ति' शब्द पर ६० साल का विवाद – भूमिका।। इंगलैंड में व्यक्ति शब्द पर इंगलैंड में कुछ निर्णय।। अमेरिका तथा अन्य देशों के निर्णय – विवाद का अन्त।।

Wednesday, April 18, 2007

यह तो बताना भूल ही गया

गोवा यात्रा कि दो बातें बताना भूल ही गया था। चलिये उसका भी खुलासा कर देता हूं।


सबसे रोमांचक लहमां
एक दिन समुद्र तट पर पैरा सेलिंग हो रही थी। मैंने भी पैरा सेलिंग करने की जिद्द पकड़ ली। मुन्ने कि मां भी मेरे साथ थी, कहने लगी बुढ़ापे में यह सब नहीं किया जाता। पर जब ठान ही ली और बच्चों जैसी जिद्द करने लगा तो उसे हामी भरनी पड़ी। वह किनारे दुसरी तरफ मुंह करके खड़ी हो गयी। उसे लगा कि मैं उड़ कर, ऊपर ही चला जांउगा।

पैरा सेलिंग में मजा आ गया - बहुत रोमांच लगा। समुद्र पर, पृथ्वी से ३०० फिट ऊंचे, नीले गगन में। नीचे आते समय दहिने तरफ की रस्सी को खीचना था जिससे हवा में मुड़ सकूं, फिर छोड़ देना था। नीचे से इशारा हुआ कि दोनो हांथ छोड़ दो में ने छोड़ दिया पर हवा चलने लगी और मैं समुद्र के बीचों बीच जाने लगा। जान सरक गयी, फिर दहिने तरफ की रस्सी खींची तो सही सलामत नीचे आया। जान में जान आयी। मैंने मुन्ने की मां की मां को देखा, कैमरा उसके गले में टंगा था, उसने कस के आखें भींच रखी थी।

उतरने के बाद शुभा जैसा भी मेरा चित्र खींच सकी
भाषण और मेरा प्रस्तुतिकरण
आप ही सोचिये कि - ऐसी दिल फेंक जगह पर, लहरों की अटखेलियों के बीच, जब आपकी नजरें लैपटॉप पर न हो कर कहीं और हों, मन कहीं और हो - तब प्रस्तुतिकरण कैसा बना होगा। भाषण सुनने वालों का भी ध्यान भी वहीं था जहां बनाने वाले का मन। शुरु हुऐ कुछ मिनट ही हुऐ नहीं की तालियों की बौछार, सीना चौड़ा हो गया। थोड़ी देर बाद देखा तो लोग जम्हाई ले रहे थे। खाना बहुत अच्छा था,सोचा कि लोगों ने ज्यादा खा लिया होगा। थोड़ी देर बाद एक टोकरी में लाल, लाल रंग का कुछ दिखायी पड़ा। सब समझ में आ गया। भाषण बन्द कर स्टेज से भागने में ही भलाई समझी।

मुझे सड़े टमाटर बिलकुल पसन्द नहीं हैं और जब से मालुम चला है कि नये टमाटर में चमक, आकार, और ज्यादा समय चलने के लिये चूहे की जीनस् मिलायी गयी है तब से टमाटर भी कम पसन्द आने लगे हैं - जी हां, टमाटर में चूहे की जीनस्, चमक आकार और ज्यादा चलने के लिये। आजकल Genetically Modified Food (जीएमएफ) में जो न हो, वही कम है। इसलिये दुनिया में बहुत सारे लोग इस तरह के खाने को नहीं खाते हैं। जीएमएफ खाने के बारे में विस्तार से चर्चा कभी और।

राज कपूर ने तीसरी कसम फिल्म में तीन कसमें खायी। मैंने भी गोवा से लौट कर तीन कसमें खायींः

  • मैं गोवा फिर से जाउंगा (हो सके तो बिना ... );
  • मैं गोवा के नशे में डूबना चाहूंगा;
  • पर गोवा में कभी भाषण नहीं दूंगा :-)

Monday, April 16, 2007

हमें आसान लगने वाली बात, अक्सर किसी और को मुश्किल लगती है

मैं क्षमा प्रार्थी हूं।
इस समय मेरे चिट्ठे पर शायरी सुनायी पड़ती है। इस पर, मेरी पिछली चिट्ठी पर ब्रह्मराक्षस जी ने टिप्पणी कर आपत्ति की कि,
  • इसका बजना गलत है;
  • उन्हें मेरे चिट्ठे पर आ कर कष्ट हुआ;
  • मैं इस कविता पाठ को तुरन्त हटाऊं।

मैं ब्रह्मराक्षस जी को नहीं जानता, पर इनकी कड़वी टिप्पणी अच्छी लगी। मुझे लगा कि,
  • मेरे चिट्ठे पर केवल अन्तरजाल पर अभ्यस्त लोग ही नहीं आते हैं पर कुछ नये लोग भी आते हैं;
  • ब्रह्मराक्षस जी, अपनी तथा अपने जैसे अन्य लोगों की व्यथा बता रहें हैं; और
  • मुझे इसका तुरन्त निराकरण करना चाहिये।

मैंने उन्हें धन्यवाद दिया , माफी मांगी, और समस्या का हल वहीं यह टिप्पणी कर बताया,
'ब्रह्मराक्षस जी, मैंने न तो आपकी बात का बुरा माना, न ही मुँह फुलाया। मैं तो आपको धन्यवाद देना चाहता हूं कि आपने मेरे चिट्ठे की कमी को बताया।
यह कविता या शायरी, न तो मेरी है न ही वह आवाज मेरी है। यह तो एक विज़ट है जो मैंने कुछ दिन तक, अपने आने वाली सिरीस 'हमने जानी है जमाने में रमती खुशबू' के लिये लोड कर रखी है। उस सिरीस के समाप्त होते ही यह हट जायगी। इस विज़ट में इस आवाज़ को बन्द करने का बटन है और इस बटन पर चटका लगा कर आसानी से बन्द किया जा सकता है। मैं यही समझता था कि अन्तरजाल पर जाने वाला इस बात को समझता होगा या फिर आसानी से समझ लेगा और यदि इसे नहीं सुनना चाहता है तो वह स्वयं बन्द कर लेगा। आपकी टिप्पणी से लगता है कि मेरी समझ गलत थी और कुछ लोग ऐसे भी हो सकते हैं जो यह न समझ पायें। अब मैंने यह स्पष्ट तरीके से लिख दिया है। अब आपको यह तकलीफ न होगी। आपको कष्ट हुआ इसके लिये माफी चाहता हूं।
आप न केवल मेरे चिट्ठे पर आये, पर मेरे चिट्ठे पर कमी बतायी और टिप्पणी भी की, इसलिये धन्यवाद। कृपया आगे भी इसी प्रकार आकर कमियां बताते रहियेगा।'

यदि किसी और पाठकगण को इस तरह का कष्ट हुआ तो मुझे माफ करें। इसे बन्द करने का तरीका बहुत आसान है। आप उसी विज़ट में बन्द करने वाले बटन के चिन्ह पर चटका लगायें, आवाज तुरन्त बन्द हो जायगी।

अक्सर जिस बात को आप बिलकुल आसान समझते हैं वह किसी दूसरे के लिये बहुत मुश्किल की हो सकती है। मुझे यह बात ओपेन सोर्स के लिये तो सच लगती थी पर लगता है कि शायद यह बहुत सारी अन्य बातों के लिये भी सच है। हो सकता है कि यह बात मेरे पॉडकास्ट के लिये भी सच हो। चलिये लगे हाथ, इसके बारे में भी कुछ बिन्दुवों को स्पष्ट कर लेते हैं।

गीत, संगीत, या पॉडकास्ट में क्या अन्तर है?
गाना, या संगीत, या पॉडकास्ट एक तरह की ऑडियो फाइल है। इनमें केवल अन्तर फॉरमैट का होता है। इस समय तरकश पर और राम चन्द्र मिश्र जी भी पॉडकास्ट करते हैं। इनका पॉडकास्ट mp3 फॉरमैट में रहता है जबकि मेरा पॉडकास्ट ogg फॉरमैट में रहता है।

फॉरमैट के अन्तर से क्या फर्क पड़ता है?
mp3 सबसे लोकप्रिय फॉरमैट है। यह सब प्रोग्राम में बज सकता है पर ogg सब प्रोग्रामों में नहीं बज सकता है। यदि आप मेरे पॉडकास्ट को ऐसे प्रोग्राम में बजायेंगे जो इसे समर्थन नहीं देता है तो वह नहीं बजेगा। इसलिये आप उसे ऐसे प्रोग्राम में बजायें जिसमें यह बज सकता हो।

मेरे पॉडकस्ट (ogg फॉरमैट) को किस प्रोग्राम में सुना जा सकता है?
मेरे पॉडकस्ट या फिर ogg फॉरमैट की फाईलों को आप,
  • Windows पर कम से कम Audacity एवं Winamp में;
  • Linux पर लगभग सभी प्रोग्रामो में; और
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity में,
सुन सकते हैं।

विंडोज़ में डिफॉल्ट (default) ऑडियो फाइल बजाने के लिये विंडोज़ मिडिया प्लेयर का प्रोग्राम है। यह ogg फॉरमैट की फाइलों को नहीं बजा सकता है। आप मेरे पॉडकास्ट को डाउनलोड कर लें फिर इसे, जिस प्रोग्राम में यह फॉरमैट बज सकता हो, उस पर बजायें।

विंडोज़ मिडिया प्लेयर को डिफॉल्ट प्रोग्राम से कैसे हटाया जा सकता है?
इसके लिये आप अकसर पूछे जाने वाले सवाल: पॉडकास्ट, या गाने, ऑडियो फाइल के बारे में पर देखें। यहां इस सवाल के अतिरिक्त पॉडकास्ट से सम्बन्धित अन्य सवालों का उत्तर है। आप हिन्दी और कंप्यूटर या चिट्ठा और कंप्यूटर या हिन्दी लेखन और चिट्ठेकारी- सहायता के बारे में सवाल या सूचना भी पढ़ सकते हैं।

मैं क्यों अपना पॉडकास्ट, ogg फॉरमैट में रखता हूं?
mp3 फॉरमैट मलिकाना है। जब कि ogg फॉरमैट मुक्त फॉरमैट है और इस पर किसी का कोई मलिकाना अधिकार नहीं है। मैं इसी लिये अपना पॉडकास्ट इसी फॉरमैट में रखता हूं। इसके बारे मे विस्तृत जानकारी यहां देखें। मैंने इसे अपनी चिट्ठी 'पापा, क्या आप उलझन में हैं' पर विस्तार से बताया है।

क्या मैं आगे भी अपना पॉडकास्ट ogg फॉरमैट पर रखूंगा?
मैं अपने पॉडकास्ट को अपने चिट्ठों पर विज़िट के रूप में रखना चाहता हूं ताकि आप इसे वहीं पर सुन सकें। मैं इसके लिये कुछ प्रयोग कर रहा हूं। अभी तक तो लगता है कि यह तभी हो सकता है जबकि पॉडकास्ट mp3 फॉरमैट पर हो। इसलिये हो सकता है कि मुझे मजबूरन अपने पॉडकास्ट mp3 फॉरमैट पर तब तक रखने पड़ें जब तक ogg फॉरमैट में इस तरह की सुविधा नहीं हो जाती।

Sunday, April 15, 2007

न मांगू सोना, चांदी

हम लोग गोवा में जिस होटेल में रुके थे उसमें हर रात को अलग अलग रेस्तरां पर किसी न किसी थीम पर खाना होता था। एक रात, समुद्र के किनारे, बारबेक्यू चल रहा था, खाना अफ्रीकन थीम पर था। कुछ अफ्रीकन लोग, तरह तरह के करतब दिखा रहे थे और नाच रहे थे। वे होटेल के मेहमानो को भी स्टेज पर नाचने के लिये बुलाने लगे, कई गये। मैं भी नाचने के लिये जाने लगा तो मुन्ने की मां ने हांथ पकड़ लिया,
'क्या करते हो, इस बुढ़ापे में क्या हो रहा है।'
मैंने कहा,
'अमिताभ बच्चन भी तो करता है।'
मुन्ने की मां बोली, '
वह तो पैसे के लिये, पिक्चर में - सपनो की दुनिया में करता है। यह तो असली जिन्दगी है लोग क्या कहेंगे।'
झक्क मार कर बैठ गया।

गोवा में हमारी आखरी रात पर, गोवन थीम पर भोजन था। हम भी गये। पहुंचते ही एक स्वागत ड्रिंक मिली। मैंने पी ली पर मुन्ने की मां ने नहीं ली। लगता तो संतरे का जूस था पर स्वाद कुछ अजीब था। मैंने वेटर से पूछा कि यह क्या है। उसने बताया,
'यह संतरे का जूस है पर इसमें थोड़ी सी काजू फेनी मिली हुई है।'
फेनी गोवा की देसी शराब है। यह दो तरह की होती हैः काजू फेनी और नारियल फेनी। यह उसी तरह की तरह है जैसे उत्तरी भारत में महुऐ से बनी देसी शराब। महुऐ से बनी शराब नीबू और पानी के साथ ली जाती है और फेनी किसी न किसी जूस के साथ ली जाती है। मैं शराब नहीं लेता। वेटर के बताने पर तो धर्म संकट में फंस गया - न तो निकाली जा सके, न पचायी जा सके।

सामने स्टेज पर, एक बैण्ड संगीत सुना रहा था जिसका संचालन समार्ट सी युवती कर रही थी। इसने कोकण के लोकगीत सुनाये, कुछ लोकनृत्य दिखाये। एक लोक गीत के साथ, लोकनृत्य 'टेंपल डांस' (Temple Dance) के नामे से भी दिखाया। इसकी धुन बहुत प्यारी ओर सुनी हुई लगी। मैंने उस युवती से इस गीत लोक नृत्य का महत्व पूछा। इसने बताया,
'कुछ युवतियां शादी में शामिल होना चाहती हैं पर उसके लिये नदी पार करनी है जो कि उफान में है और नाविक उन्हें नहीं ले जा रहा है। वे नाविक को गीत गा कर, नृत्य दिखा कर रिझा रहीं हैं कि उन्हें नदी पार करवा दे।'
मैंने पूछा, यदि इसका यह अर्थ है तो इसे आप टेंपल डांस क्यों कह रहीं हैं। उसने कहा,
'यह नृत्य दिये के साथ किया जाता है इसलिये इसे 'टेंपल डांस' कहा जाता है।'
मैंने उससे कहा कि लोकगीत की धुन बहुत प्यारी है क्या वह इसे बिना कोंकणी गीत के, एक बार फिर से सुनवा सकती है। उसने कहा अवश्य और धुन बजाने के पहले स्टेज से हमें इंगित कर कहा,
'This item is dedicated to the young couple sitting at the left corner'
हमारा मन तो उसका हमें नवजवान जोड़े कहने से ही प्रसन्न हो गया। धुन भी अच्छी तरह से समझ में आयी और यह भी समझ आया कि यह क्यों अच्छी लगी। इसी धुन पर तो बौबी फिल्म का यह गाना है,
न मांगू सोना चांदी,
न चांहू हीरा मोती
देती है दिल दे, बदले में दिल दे
प्यार में सौदा नहीं
है, है....
रात बहुत हो चली थी अगले दिन वापस चलना था। हम लोग वापस समुद्र के किनारे, किनारे अपने कमरे के लिये चल दिये।

बॉबी फिल्म का गीत 'न मांगू सोना चांदी' सुनिये।



Thursday, April 12, 2007

इंगलैंड में व्यक्ति शब्द पर इंगलैंड में कुछ निर्णय: आज की दुर्गा

यदि आप इस चिट्ठी को पढ़ने के बजाय सुनना चाहें, तो मेरे बकबक पॉडकास्ट पर यहां सुन सकते हैं।

'व्यक्ति' शब्द पर उठे विवाद पर सबसे पहला प्रकाशित निर्णय Chorlton Vs. Lings (१८६९) का है। इस केस में कानून में पुरूष शब्द का प्रयोग किया गया था। उस समय और इस समय भी, इंगलैंड में यह नियम था कि पुलिंग में, स्त्री लिंग भी शामिल है। इसके बावजूद यह प्रतिपादित किया कि स्त्रियां को वोट देने का अधिकार नहीं है। इंगलैण्ड के न्यायालयों में इसी तरह के फैसले होते रहे जिसमें न केवल पुरूष ब्लकि व्यक्ति शब्द की व्याख्या करते समय, महिलाओं को इसमें सम्मिलित नहीं माना गया। जहां व्यक्ति शब्द का भी प्रयोग किया गया था वहां भी महिलाओं को व्यक्ति में शामिल नहीं माना गया। इन मुकदमों में Bressford Hope Vs. Lady Sandhurst (1889), Ball Vs. Incorp, society of Law Agents (1901) उल्लेखनीय है । 1906 में इंगलैण्ड की सबसे बड़ी अदालत हाउस आफ लॉर्डस ने Nairn Vs. Scottish University में यही मत दिया। यही विचार वहीं की अपीली न्यायालय ने Benn Vs. Law Society (१९१४) में व्यक्त किये।

इंगलैंड में यही क्रम जारी रहा। इन न्यायालयों में लड़ाई के अतिरिक्त वहां समाज में भी यह मांग उठी कि महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिले। भारत के पूर्व वायसराय लॉर्ड कर्जन भी महिलाओं को वोट का अधिकार देने के विरोधी खेमी में थे। उनका तो यहां तक कहना था कि यदि भारत के लोगों को पता चलेगा कि इंगलैण्ड की सरकार महिलाओं के वोट पर बनी है तो भारतवासी उस सरकार पर वह विश्वास करना छोड़ देगें। इंगलैंण्ड में महिलायें वोट देने के अधिकार से १९१८ तक वंचित रहीं। उन्हें इसी साल कानून के द्वारा वोट देने का अधिकार मिला। इंगलैण्ड में स्त्रियों के साथ बाकी भेदभाव लैंगिक अयोग्यता को हटाने के लिए १९१९ में बने अधिनियम से हटा।

इसके पहले कि हम लोग जाने कि इस विवाद का कैसे अन्त हुआ, चलिये देखते हैं कि अमेरिका तथा अन्य देशों में 'व्यक्ति' शब्द पर क्या निर्णय हुऐ।

आज की दुर्गा
महिला दिवस|| लैंगिक न्याय - Gender Justice|| संविधान, कानूनी प्राविधान और अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज।। 'व्यक्ति' शब्द पर ६० साल का विवाद – भूमिका।। इंगलैंड में व्यक्ति शब्द पर इंगलैंड में कुछ निर्णय।।

Monday, April 09, 2007

मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती

गोवा में आमदनी का मुख्य स्रोत पर्यटन है पर इसके अलावा वहां मैगनीस और लोहे की खान हैं। खान से मैगनीस और लोहे का अयस्क (ore ) निकाल कर बड़ी बड़ी नावों में पोर्ट पर लाया जाता है। वहां से जहाजों भर कर बाहर। मैगनीस का अयस्क कुछ काला और लोहे का लाल रंग का रहता है। बोट में सैर करते समय अयस्क ले जाने वाली नाव दिखायी पड़ती हैं। मैगनीस का अयस्क कोरिया और जापान भेजा जाता है और लोहे का जापान और चीन को।

नये बजट में इस अयस्क पर ३०० रुपये प्रति टन की ड्यूटी लग गयी है जिसका वहां बहुत विरोध है। लोहे का अयस्क जो चीन भेजा जाता है उसका दाम २०० रुपये प्रति टन का होता है, उस पर ३०० रुपये प्रति टन की ड्यूटी - ठीक तो नहीं लगती। बात में कुछ दम तो लगता है।

गोवा में कुछ लोगों ने और ही किस्सा बताया। लोहे का अयस्क केवल जापान भेजा जाता था। इसके बाद बचे हुऐ अयस्क में लोहे की मात्रा बहुत कम होती थी तथा वह बेकार होता था। यह बेकार गोवा में पर्यावरण की मुश्कलें पैदा कर रहा था। खान वालों को हटाने के लिये कहा गया पर उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें, कैसे करें। चीन किसी और देश से लोहे का अयस्क खरीदता है जिसमें लोहे की मात्रा ज्यादा होती है। चीन की मशीने इस कार्य के लिये उपयुक्त नहीं थी। इसलिये कम मात्रा के लोहे का अयस्क जो की गोवा में बेकार था उसको मिला कर मशीन के लिये उपयोगी बनाया गया। इसमें कड़ोड़ों रुपया कमा लिया गया। यदि बेकार को बेच कर पैसा कमा लिया तो क्या गलती हुई, बस शायद सरकार को उसके किसी प्रतिशत पर ड्यूटी लगानी चाहिये।
मैं नहीं जानता कि इस बजट में इसमें कुछ बदलाव किया गया अथवा नहीं।

आजकल गोवा में विकास को लेकर बहस छिड़ी हूई है। वहां पर गोवा प्लान २००१ लागू है। यह १९८६ में अधिसूचित किया गया था। सब का यह मानना है कि यह अब अनावश्यक हो गया है। १९९७ में एक नया प्लान २०११ शुरू किया गया। यह १० अगस्त २००६ में अधिसूचित किया गया। लोगों का कहना है कि इसमें बहुत बदलाव किये गये हैं और बहुत ज्यादा जमीन नगरीय प्रयोग के लिये रख दी गयी है। इसके कारण वहां का पर्यावरण और सुन्दरता नष्ट हो रही है। इस बारे में बम्बई उच्च न्यायालय की गोवा बेन्च के समक्ष एक जनहित याचिका भी चल रही है। सरकार ने, जन-मानस की भावनाओं का ध्यान रखते हुऐ इस प्लान को २६ जनवरी २००७ को समाप्त कर दिया है। सरकार अब दुसरा प्लान २०१७ बना रही है शायद यह चुनाव के बाद आये।

गोवा में विदेशी भी आकर जमीन खरीद रहें हैं जिससे वहां दाम बढ़ रहे हैं। यह वहां के लोगों के लिये चिन्ता का विषय है जैसा कि ममता जी यहां अपने चिट्ठा पर यहां बता रहीं हैं।

अब इतना अच्छा समय व्यतीत करने के बाद मैं क्या चाहता हूं, शायद हम सब क्या चाहते हैं, यह अगली बार।

उपकार फिल्म का गीत 'मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती' सुनिये।




गोवा

प्यार किया तो डरना क्या।। परशुराम की शानती।। रात नशीले है।। सुहाना सफर और यह मौसम हसीं।। डैनियल और मैक कंप्यूटर।। चर्च में राधा कृष्ण।। मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती।। न मांगू सोना, चांदी।। यह तो बताना भूल ही गया।। अंकल तो बच्चे हैं
यदि आप हिन्दी की लेखिका मालती जोशी के बारे में जानना चाहें तो मुन्ने की मां के चिट्ठा पर यहां पढ़ सकते हैं।

Friday, April 06, 2007

चर्च में राधा कृष्ण

गोवा के चर्च प्रसिद्ध हैं उनमे सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैंः बेसिलका ऑफ बॉम जीज़स और सर कैथ्रिडल। यह दोनो आमने सामने हैं बीच में सड़क है।

बेसिलका ऑफ बॉम जीज़स को बने हुऐ ५०० साल से ज्यादा हो गये हैं। इसमें फ्रांसिस ज़ेवियरस् का शव रखा हुआ है। इस चर्च में मोमबत्ती जलाने का रिवाज है। कहते हैं कि मन मुराद पुरी हो जाती। हम ने भी दस रुपये में पांच मोमबत्ती खरीदीं। चर्च के अन्दर का दृश्य बहुत भव्य था। चर्च के एक अलग बड़ा सा आंगन था मोमबत्ती वहीं एक जगह जलानी थी। मुन्ने की मां ने पूछा
'तुमने क्या मन्नत मांगी।'
मैंने कहा
'वही जो कि मैंने फतेहपुर सीकरी में मांगी थी।'
वह मेरे साथ फतेहपुर सीकरी नहीं गयी थी। उसने दूसरा सवाल पूछने से पहले, मेरे जवाब का अनुमान करते हुऐ कहा,
'यदि अब मैं तुमसे यह पूछूं कि तुमने फतेहपुर सीकरी में क्या मन्नत मांगी थी तो यह मत कहना कि जो तुमने यहां मांगी है।'
मुस्कराहट तो आ ही गयी।

कहा जाता है कि शाहंशाह अकबर को पुत्र नहीं था सूफी संत सलीम चिस्ती के आशिर्वाद से अकबर को तीन पुत्र रत्न प्राप्त हुऐ। उनके एक पुत्र का नाम, उन्हीं के नाम पर सलीम रखा गया। सलीम आगे चल कर जहांगीर के नाम से शाहंशाह बना। फतेहपुर सीकरी अकबर ने सूफी संत सलीम चिस्ती के सम्मान में बनवायी थी। यहां संत सलीम की कब्र भी है। इसी पर चादर चढ़ा कर, मन्नत मांगने की बात रहती है। अकबर ने अपने पुत्र पैदा होने के उपलक्ष में इसे बनवाया था। यहां तो अपने बच्चों के भले के अलावा कोई और क्या मांग सकता है। मैंने वही मांगा जो हम सब चाहते हैं।
'हे ईश्वर, हमारे बच्चों को संतोष, सुख, और शान्ति देना - हम दोनो से ज्यादा, चाहे वह थोड़ा ही ज्यादा क्यों न हो।'

हम लोग सड़क पार कर सर कैथ्रडल में भी गये। यह भी बहुत भव्य है। इसके बाहर का दृष्य हमारे गाईड के साथ यह रहा। गाईड ने बताया कि इस चर्च में कब्रिस्तान भी है। इसमें महत्वपूर्ण पुर्तगालियों की शव भी गड़े हैं। वहां एक चमत्कारी क्रौस भी है। किंवदन्तियों के अनुसार इसका आकार तब तक बढ़ता रहा जब तक ईसा मसीह स्वयं इसके ऊपर नहीं आ गये। इस क्रौस के ऊपर एक सफेद दुप्पटा पड़ा है जिसे ईसा मसीह का प्रतीक कहा जाता है।

क्रौस मुझे हमेशा त्याग का प्रतीक लगता है। मां तो त्याग का ही रूप होती है। क्रौस पर सफेद रंग का कपड़ा - जैसे किसी महिला ने सफेद साड़ी साड़ी का पल्लू ओढ़ रखा हो। अम्मां तो सधवा थीं पर मैंने हमेशा उन्हें सफेद सूती धोती में ही देखा। हम सब भाई बहन की शादी में भी। मेरे पिता यही चाहते थे। मुझे इसे देख कर बस अम्मां की याद आयी।

चर्च की इमारत से बाहर निकलते ही, उसी के आहाते में, दो छोटे सजे हुऐ बच्चे मिले। मैंने पूछा कि तुम क्या बने हो उन्होने कहा कि,
'हम राधा कृष्ण बने हैं।'
वहीं पर उन्होने मुझे एक भजन सुनाया और पोस देकर फोटो भी खिंचवायी। पर मुझे उनकी फीस देनी पड़ी - दोनो को आइसक्रीम खिलानी पड़ी।

चर्च के अन्दर मां मिली और बाहर राधा कृष्ण – यात्रा ही सफल हो गयी।

गोवा में आमदनी का मुख्य स्रोत पर्यटन है पर इसके अलावा भी वहां की मिट्ठी कुछ अलग गुल खिला रही है, यह अगली बार।

Wednesday, April 04, 2007

'व्यक्ति' शब्द पर ६० साल का विवाद – भूमिका: आज की दुर्गा

हमारा समाज पुरुष प्रधान है। इसके मानक पुरुषों के अनुरूप रहते हैं। तटस्थ मानकों की भी व्याख्या, पुरुषों के अनुकूल हो जाती है। कानून में हमेशा माना जाता है कि जब तक कोई खास बात न हो तब तक पुलिंग में, स्त्री लिंग सम्मिलित माना जायेगा। कानून में कभी कभी पुलिंग, पर अधिकतर तटस्थ शब्दों का प्रयोग किया जाता हैं जैसे कि 'व्यक्ति'। अक्सर कानून कहता है कि, यदि किसी 'व्यक्ति' (person),
  • की उम्र ..... साल है तो वह वोट दे सकता है,
  • ने ---- साल ट्रेनिंग ले रखी है तो वह वकील बन सकता है,
  • ने विश्वविद्यालय से डिग्री प्राप्त की है तो वह उसके विद्या परिषद (Academic council) का सदस्य बन सकता है,
  • को गवर्नर जनरल, सेनेट का सदस्य नामांकित कर सकता है।
ऐसे कानून पर अमल करते समय, यह सवाल उठा करता था कि इसमें 'व्यक्ति' शब्द की क्या व्याख्या है। इसके अन्दर हमेशा पुरूषों को ही व्यक्ति माना गया, महिलाओं को नहीं। हैं न, अजीब बात है। भाषा, प्रकृति तो महिलाओं को व्यक्ति मानती है पर कानून नहीं। महिलाओं को, अपने आपको, कानून में व्यक्ति मनवाने के लिए ६० साल की लड़ाई लड़नी पड़ी और यह लड़ाई शुरू हुई उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से।

अगली बार हम इंगलैंड में 'व्यक्ति' शब्द पर हुऐ कुछ फैसलों पर अपनी नजर डालेंगे।

यदि आप, इस चिट्ठी को पढ़ने के बजाय, सुनना पसन्द करें तो इसे मेरी 'बकबक' पर यहां क्लिक करके सुन सकते हैं। यह ऑडियो क्लिप, ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
  • Windows पर कम से कम Audacity एवं Winamp में;
  • Linux पर लगभग सभी प्रोग्रामो में; और
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity में,
सुन सकते हैं। मैने इसे ogg फॉरमैट क्यों रखा है यह जानने के लिये आप मेरी शून्य, जीरो, और बूरबाकी की चिट्ठी पर पढ़ सकते हैं।

आज की दुर्गा
महिला दिवस|| लैंगिक न्याय - Gender Justice|| संविधान, कानूनी प्राविधान और अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज।। 'व्यक्ति' शब्द पर ६० साल का विवाद – भूमिका।।

Monday, April 02, 2007

डैनियल और मैक कंप्यूटर

हम गोवा में जिस होटेल में रुके थे वह समुद्र तट के बगल में है पर समुद्र तट होटेल वालों का नहीं है। फिर भी, होटेल वाले समुद्र तट को हमेशा साफ रखते हैं क्योंकि उनके यहां ८०% से अधिक लोग विदेशी हैं और वे इसी समुद्र तट के लिये इस होटेल में आते हैं। समुद्र तट की सफाई भी देखने काबिल थी। समुद्र पर अटखेलियां करती हुई लहरें , तट पर सुन्दर लोग, बेहतरीन नज़ारा और सबसे अच्छी बात, कोई टोकने वाला नहीं।

गोवा में मुझे एक प्रस्तुतीकरण भी देना था, यह समय आभाव के कारण पूरा नहीं हो पाया था। इसे पूरा करने के लिये, मैं सुबह ही लैपटॉप लेकर बाहर चला गया। मुझे वहां जर्मन इंजीनियर डैनियल मिला। वह यांत्रिक इंजीनियर है और गाड़ियों के ब्रेक बनाने वाली कम्पनी में काम करता है। उसके पास मैक कंप्यूटर था। वह विंडोस़ पर काम करता था और कुछ महीने पहले ही मैक पर काम करना शुरू किया है। उसके मुताबिक मैक सॉफ्टवेर बहुत अच्छा और सरल है। मैंने पूछा क्या विंडोस से भी। उसका जवाब था हां। उसके अनुसार जर्मनी में भी लोग चोरी की विंडोस़ प्रयोग करते हैं और यह लगभग ५०% है।

Guten Tag! Daniel,
It was pleasure to meet you. I hope you have tried OpenOffice.Org suit. Do try Firefox, Thunderbird, and Sunbird. They all are open source and great software. Some of Hindi bloggers will like to know more about Mac software. Please let us know more about the same and its support for languages other than English.
Tschüss! (I hope my German is correct) till we meet again.

डैनियल अपनी कंपनी की तरफ से अपने सहयोगी के साथ हिन्दुस्तान आये थे। वे लोग मीटिंग में पूना गये थे फिर गोवा में सम्मेलन में आये थे।

डैनियल को बहुत आशचर्य हुआ कि मेरा लैपटॉप लिनेक्स पर है। मैने उसे इसके बारे में और कुछ अन्य ओपेनसोर्स के सॉफ्टवेर के बारे में जानकारी दी। कुछ देर बाद जब हम फिर मिले तो उसने बताया कि वह ओपेन ऑफिस डाट ऑर्ग की वेबसाईट पर गया था और इसे डाउनलोड कर दिया है। वह इसका प्रयोग करेगा। होटेल में कमरे में तो लाईन से ब्रॉडबैंड था पर सार्वजनिक जगहों पर वाई फाई था। चलिये एक और व्यक्ति ओपेन सोर्स प्रयोग करने के लिये राजी हुआ।




अगली बार चर्च में मिलेंगे राधा कृष्ण से।