Saturday, June 30, 2007

अनएन्डिंग लव: हमने जानी है जमाने में रमती खुशबू

मैंने इस श्रंखला की छटवीं कड़ी में, रोमन हॉलीडे फिल्म के बारे में बात की थी। इस फिल्म की मुख्य भूमिका आड्री हेपबर्न और ग्रेगरी पेक ने निभायी थी। यह दोनो मेरे प्रिय कलाकार रहे हैं। इनका अभिनय लाजावाब था।

अंग्रेजी पिक्चरों में, अक्सर, शब्दों के उच्चारण समझने में मुश्किल होती थी। आड्री हेपबर्न तो ब्रिटानी कलाकारा थी उनका उच्चारण आसानी से समझ में आता है पर ग्रेगरी पेक अमेरिकन थे फिर भी उनका उच्चारण एकदम स्पष्ट था। इस कारण से इनकी फिल्में ज्यादा समझ में आती थीं।

आड्री हेपबर्न (४/५/१२९२ – २०/१/१९९३) की सगाई १९५० में, जेम्स हेन्सन के साथ हुई, तारीख भी तय हो गयी पर दोनों को लगा कि उनके कैरियर उन्हें अलग रखेंगे इसलिये शादी नहीं की। आड्री हेपबर्न की पहली शादी १९५४ में मेल फेरर, कलाकार, से हुई। यह १४ साल चली। उनके लड़के के अनुसार यह ज्यादा खिंची। तलाक लेने से पहले यह दोनो अलग हो गये थे। उस समय आड्री हेपबर्न एक मनोचिकित्सक एन्ड्रिया डॉटी के यहां जाने लगी। बाद में उसी से १९६९ में शादी कर ली। यह शादी भी १३ साल तक चली।

रोमन हॉलीडे १९५३ में बनी थी। आड्री हेपबर्न इसे अपनी सबसे बेहतरीन फिल्म मानती थीं क्योंकि इस फिल्म ने उन्हें सितारा बनाया था। मैंने उनकी सारी फिल्में देखीं और रोमन हॉलीडे के अतिरिक्त जो फिल्में पसन्द आयीं वह हैं, 'शराड', 'माई
फेयर लेडी', 'वार एण्ड पीस', 'हाउ टू स्टील मिलियन', 'वेट अन्टिल डार्क'।

२००३ में, आड्री हेपबर्न के सम्मान में , अमेरीका ने एक स्टैम्प भी निकाला।

ग्रेगरी पेक (५/४/१९१६ – १२/६/२००३), रोमन हॉलीडे के बनते समय (१९५३), हॉलीवुड में बेहतरीन
कलाकार के रूप में नाम कमा चुके थे हालांकि उन्हें सबसे अच्छे कलाकार के लिये ऑस्कर पुरस्कार, १९६२ में 'हाउ टू किल ए मॉकिंग बर्ड' के लिये मिला। यह पुरस्कार, आड्री हेपबर्न को ऑस्कर पुरस्कार के मिलने के बाद था।

ग्रेगरी पेक ने भी अपने जीवन में दो शादियां की। १९४३ में गेटा कुकोनेन और
१९५५ में विरोनीक पसानी के साथ।

मैंने ग्रेगरी पेक की लगभग सारी फिल्में देखीं हैं। रोमन हॉलीडे के अतिरिक्त , 'मोबी डिक', 'हाउ टू किल ए मॉकिंग बर्ड', 'द गन्स आफ नेवटान', और 'मैकेन्नाज़ गोल्ड' उनकी बेहतरीन और देखने योग्य फिल्में हैं।

रोमन हॉलीडे, में वे और आड्री हेपबर्न ने पहली बार साथ काम किया। इन दोनों के बीच, इस फिल्म के
दौरान हुई मित्रता जीवन पर्यन्त चली।

रोमन हॉलीडे फिल्म बनते समय उसके विज्ञापन देने की बात चली। इस फिल्म के निर्माताओं ने उसमें ग्रेगरी पेक को ज्यादा स्थान दिया जाने की पेशकश की। उस समय ग्रेगरी पेक हॉलीवुड में स्थापित कलाकार थे पर ऑड्री हेपबर्न की यह पहली हॉलीवुड फिल्म थी। यह ग्रेगरी पेक का बड़प्पन था कि उन्होने कहा कि आड्री हेपबर्न ने इस फिल्म में बहुत अच्छा काम किया है उसे आस्कर पुरस्कार मिलेगा। उसे मेरे बराबर स्थान दिया जाय।

ऑड्री हेपबर्न की मृत्यु के बाद, ग्रेगरी पेक ने नम आंखों के साथ ने रवीन्द्र नाथ टैगोर की 'अनएन्डिंग लव' कविता सुनायी।

I seem to have loved you in numberless forms, numberless times...
In life after life, in age after age, forever.
My spellbound heart has made and remade the necklace of songs,
That you take as a gift, wear round your neck in your many forms,
In life after life, in age after age, forever.
Whenever I hear old chronicles of love, it's age old pain,
It's ancient tale of being apart or together.
As I stare on and on into the past, in the end you emerge,
Clad in the light of a pole-star, piercing the darkness of time.
You become an image of what is remembered forever.
You and I have floated here on the stream that brings from the fount.
At the heart of time, love of one for another.
We have played along side millions of lovers,
Shared in the same shy sweetness of meeting,
the distressful tears of farewell,
Old love but in shapes that renew and renew forever.
यह आड्री हेपबर्न की सबसे प्रिय कविता थी।

आड्री हेपबर्न और गेगरी पेक बेहतरीन कलाकार, बहुत अच्छे मित्र, फिर भी कभी रूमानी तौर से नहीं जुड़े। रोमन हॉलीडे फिल्म में प्रेम के साथ, सम्मान की सीमा थी तो वास्तविक जीवन में मित्रता के साथ, उसकी लक्षमण रेखा।


भूमिका।। Our sweetest songs are those that tell of saddest thought।। कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, बीते हुए दिन वो मेरे प्यारे पल छिन।। Love means not ever having to say you're sorry ।। अम्मां - बचपन की यादों में।। रोमन हॉलीडे - पत्रकारिता।। यहां सेक्स पर बात करना वर्जित है।। जो करना है वह अपने बल बूते पर करो।। करो वही, जिस पर विश्वास हो।। अम्मां - अन्तिम समय पर।। अनएन्डिंग लव।। प्रेम तो है बस विश्वास, इसे बांध कर रिशतों की दुहाई न दो।। निष्कर्षः प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो।। जीना इसी का नाम है।।

Thursday, June 28, 2007

आप स्विटज़रलैण्ड में हैं

मैं जहां जाता हूं वहां लैपटाप भी ले जाता हूं शायद यह मेरे ठाकुर जी हैं पर कश्मीर ट्रिप में साथ नहीं ले गया था।
  • अक्सर बोलना होता है - लैपटाप साथ हो तो यह आसान होता है। कशमीर का यात्रा मौज मस्ती की थी। कोई भाषण नहीं देना था इसलिए लैपटाप साथ नहीं लाया।
  • मेरे पास रिलायंस का मोबाईल फोन है। इसके कारण हमेशा अंतरजाल पर जाया जा सकता है। कशमीर में रिलायंस फोन जम्मू तक ही है और कहीं नहीं। इसलिये यह इस ट्रिप में बेकार था।
कश्मीर में, जल्द ही अन्तरजाल की याद आने लगी। पहलगांव में एक ही साईबर कैफे है। वहां पहुंचा तो पता चला कि वह खराब है :-(

पहलगांव में कोई हिन्दू या सिख नहीं है पर पुलिस स्टेशन के सामने एक मंदिर और गुरूद्वारा है। मेरे पूछने पर बताया कि जब अमरनाथ की यात्रा होती है तो यात्री इसमें जातें हैं। सिख यात्रियों के लिए गुरूद्वारा में लंगर होता है।

पहलगांव में ९ होल का गोल्फ कोर्स है। उस पर काम चल रहा है और अन्तरराष्ट्रीय स्तर का १८ होल का गोल्फ कोर्स बन रहा है। इस समय इसके तीन होल पर ही खेल हो सकता है।

पहलगांव से पास में चन्दरबाड़ी भी है। यहां टैक्सी से जाया जा सकता है। यहां पर बर्फ रहती है और स्लेजिंग की जा सकती है। हमारे लिये समय कम था। यह करना संभव नहीं था। इसलिये वहां नहीं गये।

पहलगांव में बाईसरन भी देखने की जगह है। वहां पैदल या फिर घोड़े पर बैठ कर जाया जा सकता है। वहां जाने के लिये रोड तो है पर बहुत खराब है। घोड़े वालों की विरोध के कारण, टैक्सी नहीं जा सकती पर आप अपनी कार से जा सकते हैं।

बाईसरन एक घासस्थली (Meadow) है। वहां हम लोग घोड़ों पर गये। पहुंचते ही, घोड़े वाले ने कहा,
'आप स्विटज़रलैण्ड में हैं।'
मैं कभी स्विटज़रलैण्ड नहीं गया इसलिये कह नहीं सकता कि उसकी बात सच है या नहीं पर यह जगह बहुत खूबसूरत बड़ा सा मैदान है।

हम जब बच्चों के साथ ऎसी जगह जाते थे तो हमेशा चटाई रखते थे और फिर शतरंज होता था। मुन्ने की मां को शतरंज पसन्द नहीं है इसलिए उसके साथ तो नहीं खेला जा सकता। हांलाकि यदि खेलती होती तो भी नहीं खेलता। कहीं पत्नियों से चालों में क्या कोई जीत सकता है।

ऐसी जगह हम लोग कभी-कभी donkey-donkey भी खेलते थे। इसमें गेंद या फ्रिस्बी को एक फेकता है और दूसरा पकड़ता है। पहली बार न पकड़े जाने पर D दूसरी बार O और इसी तरह से जो पहले Donkey बन जाय वह बाहर।

आप लोग स्विटज़रलैण्ड का आनन्द लीजये और मैं चलता हूं गुलमर्ग - कमरे में बन्द होने के लिये।

कश्मीर यात्रा
जन्नत कहीं है तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है।। बम्बई का फैशन और कश्मीर का मौसम – दोनो का कोई ठिकाना नहीं है।। मिथुन चक्रवर्ती ने अपने चौकीदार को क्यों निकाल दिया।। आप स्विटज़रलैण्ड में हैं।।

Saturday, June 23, 2007

अम्मां - अन्तिम समय पर

माऐं हमेशा अपने परिवार के बारे में सोचती हैं। इस चिट्ठी में, कुछ अपनी मां के अन्तिम समय की चर्चा है।
अम्मां (१९२२-१९८४), हम लोगों के इस दुनिया में आने के बाद।

Friday, June 22, 2007

मिथुन चक्रवर्ती ने अपने चौकीदार को क्यों निकाल दिया

अगले दिन हम लोग आड़ू गये। आड़ू ले जाने के लिये स्थानीय टैक्सी करनी होती है। हमने भी एक टैक्सी की। उसके चालक का नाम शहनवाज था। आड़ू में प्राकृतिक सौंदर्य है। वहां लोग पहुंच कर घोड़े पर घूमते हैं। हम लोग घोड़े पर नहीं गये। पैदल ही घूमने निकल गये। यह सुन्दर जगह है।

जब हम लोग पैदल जाने लगे तो हमारा टैक्सी चालक, शहनवाज, भी हमारे साथ था। उसका कहना था कि कश्मीरी पाकिस्तान के साथ नहीं जाना चाहते। वे या तो हिन्दुस्तान के साथ या फिर स्वतंत्र रहना चाहते हैं। उसके मुताबिक पाकिस्तान उग्रवाद फैला रहा है पर पैरा मिलिट्री फोर्स भी उग्रवादी की तरह काम कर रही है। यदि किसी के घर उग्रवादी जबरदस्ती घुस जाय। तो उसके घर की महिलाओं की इज्जत लूटते हैं। आग लगा देते हैं।

आड़ू बहुत छोटा सा गांव है जिसमें एक सरकारी मिडिल स्कूल है। दो साल पहले तक यह पांचवी तक था अब ८वीं तक है। इसे जवाहरलाल नेहरू ने शुरू करवाया था। इसमें लगभग १५० बच्चे हैं। हम जब वहां से
गुजरे तब सारे बच्चे प्रार्थना कर रहे थे। उसके बाद हर बच्चा आकर कोई गीत सुनाता है या सामान्य ज्ञान का प्रश्न पूछता था। वे अध्यापक को उस्ताद शब्द से संबोधित कर रहे थे। उस्ताद के अनुसार यह उन्हे नेतृत्व करने की शिक्षा देता है। स्कूल में अंग्रेजी, उर्दू तथा कश्मीरी पढ़ाई जाती थी। कुछ बच्चों ने अंग्रेजी में सवाल पूछे और कविता भी सुनायी, कुछ ने उर्दू में भी सुनायी।

मैनें कुछ समय बच्चों के साथ गुजारा। मैंने उनसे पूछा कि उनका सबसे पसंदीदा हीरो कौन है उनका जवाब था,
'मिथुन चक्रवर्ती।'
मुझे आश्चर्य हुआ क्योंकि अब तो उसकी कोई फिल्म भी नहीं आती है। उनके उस्ताद जी ने कहा,
'हमारे यहां ज़ी क्लासिक चैनल आता है। इसमें पुरानी पिक्चरें ही आती हैं। इधर कुछ फिल्में मिथुन चक्रवर्ती की आयी हैं। इसलिये उसका नाम ले रहे हैं।'
विद्यार्थियों ने बताया कि मिथुन चक्रवर्ती बहुत अच्छी फाइट करता है इसलिए वह उन्हें पसन्द है।

मैने भी विद्यार्थियों से एक सवाल पूछा पर सवाल के पहले भूमिका के रूप में यह किस्सा बयान किया।

मिथुन चक्रवर्ती
एक दिन सुबह हवाई जहाज से कलकत्ता जाना था। उनके यहां एक चौकीदार था। चौकीदार ने जाने के लिए मना किया। उसने कहा,
'मैने अभी सपना देखा है कि हवाई जहाज की दुर्घटना हो गयी है और सब यात्री मर गये हैं।'
मिथुन चक्रवर्ती उस फ्लाइट से नहीं गये। उस फ्लाइट की दुर्घटना हो गयी और सब यात्री मर गये। मिथुन चक्रवर्ती ने चौकीदार को इनाम दिया पर नौकरी से निकाल दिया । मैने पूछा,
'इनाम तो इसलिए दिया कि जान बच गयी पर चौकीदार को नौकरी से क्यों निकाला।'
कुछ संकेत देने के बाद एक बच्चे ने सही जवाब बता दिया।

आप भी इस पहेली का हल सोचे और मैं चलता हूं बाईसरन - यह अगली बार।


कश्मीर यात्रा
जन्नत कहीं है तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है।। बम्बई का फैशन और कश्मीर का मौसम – दोनो का कोई ठिकाना नहीं है।। मिथुन चक्रवर्ती ने अपने चौकीदार को क्यों निकाल दिया।।

Wednesday, June 20, 2007

अपने देश में Patrimony - घरेलू हिंसा अधिनियमः आज की दुर्गा

(इस बार चर्चा का विषय है कि, अपने देश में कब Patrimony मिल सकती है तथा घरेलू हिंसा अधिनियम क्या है। इसे आप सुन भी सकते हैं। सुनने के चिन्ह ► तथा बन्द करने के लिये चिन्ह ।। पर चटका लगायें।)
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हमारे देश में दो एक ही लिंग के व्यक्ति साथ नहीं रह सकते हैं और न उन्हें कोई कानूनन मान्यता या भरण-पोषण भत्ता दिया जा सकता है।

यह भी एक महत्वपूर्ण सवाल है कि क्या किसी महिला को, उस पुरुष से भरण-पोषण भत्ता मिल सकता है जिसके साथ वह पत्नी की तरह रह रही हो जब कि,
  • उन्होने शादी न की हो; या
  • वे शादी नहीं कर सकते हों।
पत्नी का अर्थ केवल कानूनी पत्नी ही होता है। इसलिए न्यायालयों ने इस तरह की महिलाओं को भरण-पोषण भत्ता दिलवाने से मना कर दिया। अब यह सब बदल गया है।

संसद ने, सीडॉ के प्रति हमारी बाध्यता को मद्देनजर रखते हुए, घरेलू हिंसा अधिनियम (Protection of Women from Domestic Violence Act) २००५ पारित किया है। यह १७-१०-२००६ से लागू किया गया। यह अधिनियम आमूल-चूल परिवर्तन करता है। बहुत से लोग इस अधिनियम को अच्छा नहीं ठहराते है, उनका कथन है कि यह अधिनियम परिवार में और कलह पैदा करेगा।

समान्यतया, कानून अपने आप में खराब नहीं होता है पर खराबी, उसके पालन करने वालों के, गलत प्रयोग से होती है। यही बात इस अधिनियम के साथ भी है। यदि इसका प्रयोग ठीक प्रकार से किया जाय तो मैं नहीं समझता कि यह कोई कलह का कारण हो सकता है।

इसका सबसे पहला महत्वपूर्ण कदम यह है कि यह हर धर्म के लोगों में एक तरह से लागू होता है, यानि कि यह समान सिविल संहिता स्थापित करने में बड़ा कदम है।

इस अधिनियम में घरेलू हिंसा को परिभाषित किया गया है। यह परिभाषा बहुत व्यापक है। इसमें हर तरह की हिंसा आती हैः मानसिक, या शारीरिक, या दहेज सम्बन्धित प्रताड़ना, या कामुकता सम्बन्धी आरोप।

यदि कोई महिला जो कि घरेलू सम्बन्ध में किसी पुरूष के साथ रह रही हो और घरेलू हिंसा से प्रताड़ित की जा रही है तो वह इस अधिनियम के अन्दर उपचार पा सकती है पर घरेलू संबन्ध का क्या अर्थ है।

इस अधिनियम में घरेलू सम्बन्ध को भी परिभाषित किया गया है। इसके मुताबिक कोई महिला किसी पुरूष के साथ घरेलू सम्बन्ध में तब रह रही होती जब वे एक ही घर में साथ रह रहे हों या रह चुके हों और उनके बीच का रिश्ता:
  • खून का हो; या
  • शादी का हो; या
  • गोद लेने के कारण हो; या
  • वह पति-पत्नी की तरह हो; या
  • संयुक्त परिवार की तरह का हो।

इस अधिनियम में जिस तरह से घरेलू सम्बन्धों को परिभाषित किया गया है, उसके कारण यह उन महिलाओं को भी सुरक्षा प्रदान करता है जो,
  • किसी पुरूष के साथ बिना शादी किये पत्नी की तरह रह रही हैं अथवा थीं; या
  • ऐसे पुरुष के साथ पत्नी के तरह रह रही हैं अथवा थीं जिसके साथ उनकी शादी नहीं हो सकती है।

इस अधिनियम के अंतर्गत महिलायें, मजिस्ट्रेट के समक्ष, मकान में रहने के लिए, अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए, गुजारे के लिए आवेदन पत्र दे सकती हैं और यदि इस अधिनियम के अंतर्गत यदि किसी भी न्यायालय में कोई भी पारिवारिक विवाद चल रहा है तो वह न्यायालय भी इस बारे में आज्ञा दे सकता है।

अगली बार चर्चा करेंगे वैवाहिक संबन्धी अपराध के बारे में और तभी चर्चा करेंगे भारतीय दण्ड सहिंता की उन धाराओं की जो शायद १९वीं सदी के भी पहले की हैं। जो अब भी याद दिलाती हैं कि पत्नी, पति की सम्पत्ति है।

आज की दुर्गा
महिला दिवस|| लैंगिक न्याय - Gender Justice|| संविधान, कानूनी प्राविधान और अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज।। 'व्यक्ति' शब्द पर ६० साल का विवाद – भूमिका।। इंगलैंड में व्यक्ति शब्द पर इंगलैंड में कुछ निर्णय।। अमेरिका तथा अन्य देशों के निर्णय – विवाद का अन्त।। व्यक्ति शब्द पर भारतीय निर्णय और क्रॉर्नीलिआ सोरबजी।। स्वीय विधि (Personal Law)।। महिलाओं को भरण-पोषण भत्ता।। Alimony और Patrimony।। अपने देश में Patrimony - घरेलू हिंसा अधिनियम

Sunday, June 17, 2007

करो वही, जिस पर विश्वास हो: हमने जानी है जमाने में रमती खुशबू

२०वीं शताब्दी के शुरु से, जून का तीसरा इतवार फादर्स् डे के रूप में मानाया जाता है। आज जून का तीसरा इतवार है। ३२ साल पहले, जून १९७५ में आपातकाल की घोषणा हुई थी। मेरे पिता की कुछ यादें, उस समय की हैं। मुझे लगा कि, इस श्रंखला के अन्दर, आज के दिन से अच्छा कोई दिन उनके बारे में बात करने के लिये नहीं हो सकता।

जून १९७५ में, मैं कशमीर में था। लोग पकड़े जाने लगे। मुझे लगा कि कस्बे पहुंचना चाहिये। मेरे पिता पकड़े जा सकते हैं और मां अकेले ही रह जांयगी। यही हुआ भी। मेरे कस्बे पहुंचते पता चला कि पिता को झूठे केस में डी.आई.आर. में बन्द किया गया। उन पर इल्जाम लगाया गया कि वे यह भाषण दे रहे थे कि जेल तोड़ दो, बैंक लूट लो। यह एकदम झूट था। उस समय देश की पुलिस और कार्यपालिका से सरकारी तौर पर जितना झूट बुलवाया गया उतना अभी तक कभी नहीं। डी.आई.आर. में पिता की जनामत हो गयी पर वे जेल से बाहर नहीं आ पाये। उन्हें मीसा में पकड़ लिया गया।

यह समय हमारे लिये मुश्किल का समय था। समझ में नहीं आता था कि पिता कब छूटेंगे। इस बीच, मित्रों, नातेदारों ने मुंह मोड़ लिया था। लोग देख कर कतराते थे। उनको डर लगता था कि कहीं उन्हें ही न पकड़ लिया जाय। मां यह समझती थीं। उन्होंने खुद ही ऐसे रिश्तेदारों और मित्रों को घर से आने के लिये मना कर दिया ताकि उन्हें शर्मिंदगी न उठानी पड़े। मुझे ऐसे लोगो से गुस्सा आता था। मैंने बहुत दिनो तक अपने घर कर बाहर पोस्टर लगा रखा था,

अन्दर संभल कर आना,
यहां डिटेंशन ऑर्डर रद्दी की टोकड़ी पर पड़े मिलते हैं।

इस मुश्किल समय पर कइयों ने हमारा साथ भी दिया। उन्हें भूलना मुश्किल है और उन्हें भी जो उस समय डर गये थे। इन डरने वालों में से ज्यादातर वे लोग थे जो उस समय के पहले या आज स्वतंत्रता प्रेमी होने का दावा करते हैं। इस समय में न्यायालयों के द्वारा दिये गये फैसलों को आप देखें तो यह बात, शायद अच्छी तरह से समझ सकें।

दो साल (१९७५-७७) हमने न कोई पिक्चर देखी, न ही आइसक्रीम खायी, न ही कोई दावत दी, न ही किसी दावत पर गये। पैसे ही नहीं रहते थे। अक्सर लोग, हमसे उस समय भी पैसे मांगने आते थे। उन्हें भी मना नहीं किया जा सकता था वे भी मुश्किल में थे, उनके प्रिय जन भी जेल में थे।

आपातकाल के समय, कई लोग माफी मांग कर जेल से बाहर आ गये पर पिता ने नहीं मांगी। उनका कहना था,

'मैंने कोई गलत काम नहीं किया। मैं क्यूं माफी मांगू। माफी तो सरकार को मागनी चाहिये।'
यह हुआ भी। आज उस समय के से जुड़े लोगों ने यह सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर लिया कि उस समय गलत हुआ। पिता लगभग दो साल तक जेल में रहे। १९७७ के चुनाव के बाद पुरानी सत्तारूढ़ पार्टी, चुनाव हार गयी तभी वे छूट पाये।

मां से संबन्धित आपतकाल की एक घटना मुझे आज भी अच्छी तरह से याद है। वे हमेशा कहती थीं,

'करो वही, जिस पर विश्वास हो। दिखावे के लिये कुछ करने की कोई जरूरत नहीं।'
वे न इसे कहती थीं पर इसे अमल भी करती थीं। नि:संदेह, ढ़कोसलों का उनके जीवन पर कोई स्थान नहीं था।


शिव अराधना ... से कोई नहीं छूटेगा।


आपतकाल के दौरान, जब मेरे पिता जेल में थे तो हमारे शुभचिन्तक हमारे घर आये। उन्होंने मेरी मां से अकेले में बात करने को कहा। बाद में मैंने मां से पूछा कि वे क्यों आये थे और क्या चाहते थे। मां ने बाद में बताया कि वे कह रहे थे कि यदि मां मंदिर में शिव भगवान की आराधना करेंगी, तो पिता छूट सकेंगे। मां ने यह नहीं किया। वे आर्यसमाजी थीं और इस तरह के कर्मकाण्ड (ritual) पर उनका विश्वास नहीं था। उनका कहना था कि,

'शिव अराधना केवल मन की शान्ति के लिये है। उससे कोई नहीं छूटेगा। लोग तो छूटेंगे न्यालाय से या फिर जनता के द्वारा।'

उच्च न्यायालय ने तो हमारा साथ दिया पर सर्वोच्च न्यायालय ने हमें शर्मिन्दा किया। मैं इसकी कहानी भी ज्लद लिखूंगा पर यहां प्रसिद्ध न्यायविद सीरवाई की राय जरूर बताना चाहूंगा। सीरवाई बहुत साल तक महाराष्ट्र राज्य के महाधिवक्ता रहे और आपकी भारतीय संविधान पर लिखी पुस्तक अद्वतीय है। इस पुस्तक में वे कहते हैं कि,

‘The High Courts reached their finest hour during the emergency; that brave and courageous judgements were delivered; ... the High Courts had kept the doors ajar which the Supreme Court barred and bolted’. (Constitution of India: Appendix Part I The Judiciary Of India)
'आपातकाल का समय, उच्च न्यालयों के लिये सुनहरा समय था। उस समय उन्होने हिम्मत और बहादुरी से फैसले दिये। उन्होने स्तंत्रता के दरवाजों को खुला रखा पर सर्वोच्च न्यायालय ने उसे बन्द कर दिया।'

आपातकाल के बाद, वे सब हमारे पास पुन: आने लगे जिन्होंने हमसे मुंह मोड़ लिया था। मां, पिता ने उन्हें स्वीकार कर लिया, हमने भी। सरकार ने पिता को राजदूत बनाकर विदेश भेजने की बात की पर उन्होने मना कर दिया। वे अपने सिद्घान्त के पक्के थे। आपातकाल के समय न माफी मांगी और न ही बाद में कोई पद लिया। उनका कहना था,

'मैंने समाज सेवा किसी पद के लिये नहीं की।'
मुझे अच्छा लगता है, गर्व भी होता है कि मेरी मां, मेरे पिता ऐसे थे। जिन्होने हमेशा वह किया जो उन्हें ठीक लगता था - दुनिया के दिखावे के लिये नहीं।

भूमिका।। Our sweetest songs are those that tell of saddest thought।। कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, बीते हुए दिन वो मेरे प्यारे पल छिन।। Love means not ever having to say you're sorry ।। अम्मां - बचपन की यादों में।। रोमन हॉलीडे - पत्रकारिता।। यहां सेक्स पर बात करना वर्जित है।। जो करना है वह अपने बल बूते पर करो।। करो वही, जिस पर विश्वास हो।। अम्मां - अन्तिम समय पर।। अनएन्डिंग लव।। प्रेम तो है बस विश्वास, इसे बांध कर रिशतों की दुहाई न दो।। निष्कर्षः प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो।। जीना इसी का नाम है।।

Friday, June 15, 2007

बम्बई का फैशन और कश्मीर का मौसम – दोनो का कोई ठिकाना नहीं है

श्रीनगर पहुंचते ही, हम टैक्सी पकड़कर पहलगांव के लिए चल दिये। पहलगांव समुद्र तट से लगभग ७५०० लगभग फीट की ऊँचाई पर है। यहां लिडर और शेषनाग नदियों का संगम है। श्रीनगर से पहलगांव का रास्ता लिडर नदी के साथ चलता है और सुन्दर है।

हमारे टैक्सी चालक का नाम ओमर था। उसने कहा कि बम्बई का फैशन और कश्मीर का मौसम दोनो एक जैसे हैं, पता नहीं कब बदल जाय। बहुत ज्लद ही इसका अनुभव हो गया। रास्ते में कहीं पांच मिनट बारिश, तो फिर तेज धूप।

रास्ते में हमने रूक कर कश्मीरी कहवा पिया। यह सुगंधित चाय सा था। इसमें दूध तो नहीं पर दालचीनी और बादाम पड़े थे।

पहलगांव में हम हेवेन (Heevan) होटल में ठहरे। यह होटल लिडर नदी के बगल में है। खिड़की के बाहर सफेद हिम अच्छादित पहाड़ या फिर पेड़ों से भरी हरी पहाड़ियां थीं। देखने में मन भावन दृश्य था।

पहलगांव, पहुंचते शाम हो चली थी। लिडर नदी पर रैफ्टिंग भी होती है। मैंने सोचा क्यों न रैफ्टिंग कर ली जाय। होटेलवालों ने कार से दो किलोमीटर ऊपर नदी के किनारे छुड़वाया फिर नदी पर रैफ्ट के ऊपर, तेज धार के साथ, तीन किलोमीटर का सफर - सर पर हैमलेट और बदन पर जैकट। रैफ्टिंग करने में पूरी तरह भीग गये। बीच में पानी भी बरसने लगा, रही सही कमी भी पूरी हो गयी। रैफ्ट ने होटल के आगे छोड़ा । वहां से दौड़ लगाकर वापस होटल आए तो कुछ गर्मी आई। कमरे में आकर कपड़े बदले फिर गर्म चाय। जान पर जान आयी।

पहले ऐसी जगह, जब हम मां के साथ जाते थे, तो वह हमेशा एक छोटी बोतल में ब्रांण्डी साथ रखती थी। ठंड लगने पर गर्म दूध में एक चम्मच ब्रांडी डालकर पीने के लिए देती थी। हम लोग ब्रांडी नहीं ले गए थे। मुझे मां की याद आयी। अगली बार अवश्य साथ ले जाऊंगा।

यदि आप यह सोचते हैं कि कश्मीर में विस्की से गर्मी पा सकती हैं। तो भूल जाइये। इस्लाम में शराब पीना हराम है। वहां अधिकतर लोग मुसलमान हैं इसलिये कशमीर में शराब बन्द है। हां, चोरी छिपे जरूर पी जाती है।

यहां पर आकर लगा कि हमे छाता भी लाना चाहिए था मालुम नहीं कब पांच मिनट के लिए बरसात।

कश्मीर में एक अनुभव और हुआ। यहां होटल अच्छे हैं। खाना अच्छा है पर तौलिये साफ नहीं होते हैं। उसका कारण यह बताया कि सूखने में मुश्किल होती है। मुझे लगा कि अपने साथ छोटे छोटे तौलिये भी रहने चाहिये ताकि बदन पोंछा जा सके।

बहुत अच्छा हुआ कि हमने पहुंचते ही रैफ्टिंग कर ली। क्योंकि अगले दिन रैफ्टिंग नहीं हो रहीं थी। होटल वाले ने बताया कि किसी ने रैफ्टिंग वाले को पीट दिया था इसलिए उनकी हड़ताल है । एक बार का वे २०० रूपये लेते हैं। एक दिन में कम से कम १००० लोगों ने रैफ्टिंग की। यानि हड़ताल में २ लाख का घाटा। सच है हड़ताल से हड़ताल वालों का ही घाटा होता है।

मैंने राजीव जी की मदद से नया कैमरा तो ले लिया पर अभी ठीक से चित्र नहीं खींच पाता हूं। इसलिये पहलगांव और गुलमर्ग में चित्र में खींचने में कुछ गड़बड़ हो गयी। यही कारण है कि मैं चित्रों नहीं दिखा पा रहा हूं। इसका मुझे दुख है।

अगले दिन हमने आड़ू गये। मैं हमेशा स्कूल, विश्वविद्यालय में बच्चों के साथ समय व्यतीत करना चाहता हूं। उनके साथ रह कर जीवन में नया-पन आता है। वहां एक ही स्कूल है, यह सब अगली बार।

कश्मीर यात्रा
जन्नत कहीं है तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है।। बम्बई का फैशन और कश्मीर का मौसम – दोनो का कोई ठिकाना नहीं है।।

Wednesday, June 13, 2007

जो करना है वह अपने बल बूते पर करो: हमने जानी है जमाने में रमती खुशबू

इस श्रंखला की Love means not ever having to say you're sorry पर मैंने अपनी मां के बारे में लिखने की बात की थी। इस चिट्ठी के बाद, ज्ञानदत्त पाण्डे जी की ईमेल आयी कि मैं पिता-पुत्र के संबन्धों के बारे में भी लिखूं।

मेरे पिता हमेशा अपने व्यवसाय या फिर समाजिक सेवा में व्यस्त रहते थे। उनके पास हमारे या मां के लिये कभी समय नहीं होता था। हमें इसका हमेशा मलाल रहा।

मैं अक्सर अपने मित्रों को पिता के साथ मौज करते देखता था, जलन भी होती थी। यह सारी कमी मां ही ने पूरी की। पिता यदि चाहते तो बहुत पद मिल सकते थे हमारे लिये बहुत कुछ कर सकते थे पर कभी किया नहीं। सबके पिता करते थे इसीलिये हमें वे समझ में नहीं आते थे। उनका कहना था,

'जो करना है वह अपने बल बूते पर करो। यही जीवन, सार्थक जीवन है।'

आज, जीवन के तीन चौथाई बसन्त देख लेने के बाद, अब पिता समझ में आने लगे हैं, उनके सिद्धान्त भी समझने लगा हूं, उन पर गर्व भी होने लगा है। उनसे जुड़ी कई बातें, उनके सिद्धान्त आपातकाल के समय (१९७५-७७) के हैं। वे लगभग दो साल जेल में रहे।

कहा जाता व्यक्ति की सही पहचान करने का समय मुसीबत का समय होता है वह समय नहीं जब सब अच्छा चल रहा हो। आपातकाल का समय हमारे लिये मुश्किलो भरा समय था। इसके बारे में भी लिखूंगा।


आपातकाल का समय हमारे लिये मुश्किलो भरा समय था


मेरे विचार में पिता की कही बातों के साथ, यह भी आवश्यक है कि हम आने वाली पीढ़ी के साथ समय व्यतीत करें। हमारे बच्चे ही हमारे सबसे बड़ी सम्पदा हैं। पिता के सिद्धन्तो के कारण हम उस स्कूल में गये जहां एक साधरण हिंदुस्तानी जाता है। शायद यही कारण हो कि मुन्ने के बड़े होते समय मैंने उसका दाखिला देहरादून में, हिन्दुस्तान के एक सबसे जाने माने बोर्डिंग स्कूल में करवा दिया। दाखिले के समय उस स्कूल के प्रधानाचार्य (या शायद उप- प्रधानाचार्य) ने कहा,

'हमारा स्कूल हिन्दुस्तान का सबसे अच्छा स्कूल उन बच्चों के लिये है जिनके माता पिता के पास बच्चों के लिये समय नहीं है।'

मुझे अपना जीवन याद आया। मैं मुन्ने को वापस ले आया। उस स्कूल में नहीं पढ़ाया। मैं नहीं चाहता था कि मेरे बच्चे कभी सोचे कि हमारे पास उनके लिये समय नहीं था। मुझे यह भी लगा कि जो संस्कार हम उसको दे सकेंगे वह संस्कार यह स्कूल, जिसका अधिकारी ऐसा सोचता हो, न दे सकेगा। मैंने उनके साथ कुछ समय बिताया है और इसका कुछ जिक्र 'Don't you have time to think' और 'पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा' चिट्ठियों में किया है।

अगली बार कुछ अपने पिता के बारे में, कुछ आपातकाल के बारे में।


भूमिका।। Our sweetest songs are those that tell of saddest thought।। कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, बीते हुए दिन वो मेरे प्यारे पल छिन।। Love means not ever having to say you're sorry ।। अम्मां - बचपन की यादों में।। रोमन हॉलीडे - पत्रकारिता।। यहां सेक्स पर बात करना वर्जित है।। जो करना है वह अपने बल बूते पर करो।। करो वही, जिस पर विश्वास हो।। अम्मां - अन्तिम समय पर।। अनएन्डिंग लव।। प्रेम तो है बस विश्वास, इसे बांध कर रिशतों की दुहाई न दो।। निष्कर्षः प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो।। जीना इसी का नाम है।।

Monday, June 11, 2007

जन्नत कहीं है तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है

कहते हैं कि जहांगीर जब सबसे पहली बार कश्मीर पहुंचा, तो कहा,
'जन्नत कहीं है तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है।'

मैं १९७५ की जून में कश्मीर गया था। मुन्ने की मां कभी नहीं गयी। हम लोगों ने कई बार कश्मीर जाने का प्रोग्राम बनाया पर बस जा न सके। हमारे सारे दायित्व समाप्त हैं। इसलिये मन पक्का कर, इस गर्मी में हम लोगो कश्मीर के लिये चल दिये।

डल झील पर सूर्यास्त

दिल्ली से श्रीनगर के लिये हवाई जहाज पकड़ा। रास्ते में भोजन मिला। प्लेट में एक प्याला भी था पर चाय नहीं मिली पर जब प्लेट वापस जाने लगी। तो मैने परिचायिका से पूछा कि यदि काफी या चाय नहीं देनी थी तो प्लेट में कप क्यों रखा था। वह मुस्कराई और बोली,
'आज फ्लाईट में बहुत भीड़ है। यह केवल एक घन्टे की है इतनी देर में सबको चाय या कौफी दे कर सर्विस समाप्त करना मुश्किल था। इसलिये नहीं दी, पर लौटते समय जरूर मिलेगी।'
परिचायिका का मुख्य काम तो अच्छी तरह से बात करना होता है। लौटती समय कौन मिलता है।

हवाई जहाज से उतरते ही टैक्सी पकड़कर हम पहलगांव के लिए चल दिये। उसके बारे में अगली बार।

Friday, June 08, 2007

Alimony और Patrimony

(इस बार चर्चा का विषय है Alimony और Patrimony. इसे आप सुन भी सकते हैं। सुनने के चिन्ह ► तथा बन्द करने के लिये चिन्ह ।। पर चटका लगायें।)



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शादी शुदा व्यक्तियों के सम्बन्ध विच्छेद होने पर जो पैसा दिया जाता है, उसे Alimony कहते हैं। अक्सर महिला-पुरूष बिना शादी किये साथ रहते है। ऎसे लोगों के लिए इंगलैण्ड में एक नया शब्द निकाला गया Common Law Wife, और Common Law Husband। लार्ड डैनिंग, २०वीं शताब्दी के एक जाने माने इंगलैण्ड के न्यायाधीश थे। उन्होंने १९७९ में डेवीस़ बनाम जॉनसन के मुकदमे में इस प्रकार से समझाया है,
'No such woman was known to the common law, but means a woman who is living with a man in the same house hold as if she were his wife. She is to be distinguished from a mistress, where relationship may be casual, impermanent and secret.'

अथार्त, कॉमन लॉ के अंतरगत इस तरह की कोई भी महिला नहीं जानी जाती थी पर इस का अर्थ उस महिला से है जो कि किसी पुरुष के साथ, एक ही घर में, पत्नी की तरह रहती है। यह रिश्ता रखैल के रिश्ते से अलग है जो कि अक्सर सामयिक, अस्थायी और गुप्त होता है।

अमेरिका के कई राज्यों में इस तरह के रहने को कानूनन नहीं माना गया फिर भी वहां लोग बिना शादी किये रहते हैं। अक्सर वे लोग भी साथ रहते हैं जो कि आपस में शादी नहीं कर सकते। उदाहरणार्थ,
  • एक पति या पत्नी रहते दूसरे के साथ शादी करना ; या
  • वह महिला और पुरूष जो करीबी रिश्तेदार होने के कारण कानूनन शादी नहीं कर सकते; या
  • दो एक ही लिंग के लोग। एक ही लिंग के लोगों के बीच की शादी या साथ रहने की मान्यता, केवल कुछ ही देशों में है। हमारे देश में नहीं है।
ऎसे व्यक्तियों के लिए Partners शब्द का प्रयोग किया जाने लगा। यह लोग भी कभी-कभी अलग हो जाते हैं तब सवाल उठता है कि इसमें से किसी एक को भरण-पोषण भत्ता मिलना चाहिए या नहीं। इन Partners के बीच में दिया गया पैसा या भरण-पोषण भत्ते को patrimony कहा जाता है।

क्या अपने देश में Patrimony मिल सकती है? इसकी चर्चा अगली बार, तभी चर्चा करेंगे - घरेलू हिंसा अधिनियम के बारे में।


आज की दुर्गा
महिला दिवस|| लैंगिक न्याय - Gender Justice|| संविधान, कानूनी प्राविधान और अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज।। 'व्यक्ति' शब्द पर ६० साल का विवाद – भूमिका।। इंगलैंड में व्यक्ति शब्द पर इंगलैंड में कुछ निर्णय।। अमेरिका तथा अन्य देशों के निर्णय – विवाद का अन्त।। व्यक्ति शब्द पर भारतीय निर्णय और क्रॉर्नीलिआ सोरबजी।। स्वीय विधि (Personal Law)।। महिलाओं को भरण-पोषण भत्ता।। Alimony और Patrimony।।

Tuesday, June 05, 2007

यहां सेक्स पर बात करना वर्जित है: हमने जानी है जमाने में रमती खुशबू

'हमने जानी है जमाने में रमती खुशबू' श्रृंखला की इस कड़ी में, यौन शिक्षा के बारे में डेविड र्यूबॅन (David Reuben) के द्वारा लिखी  एक अच्छी पुस्तक ऍवेरीथिंग यू वान्टेड टू नो अबॉउट सेक्स बट वेर अफ्रेड टू आस्क (Everything you always wanted to know about sex but were afraid to ask) के बारे में चर्चा है।