मुझे दिल्ली में एक अच्छी पुस्तक दुकान की तलाश थी। इस बार वह मिल गयी। इस चिट्ठी में उसी की चर्चा है।
शुभा के अनुसार, मेरे तीन प्यार में से, एक प्यार पुस्तकों से है। यह सच है, वे मेरी सबसे प्रिय मित्र हैं। हांलाकि, जबसे अन्तरजाल का चस्का लगा, तब से कुछ समय अन्तरजाल पर भी बीतता है। जाहिर है पुस्तकों के लिये समय कम हो गया। मैं बाहर जाते समय, पुस्तकों की जगह लैपटॉप ले जाने लगा। देव भूमि हिमाचल की यात्रा पर जाते समय मैंने तय कर लिया था कि लैपटॉप नहीं केवल पुस्तकें ले जाउंगा। यात्रा में, पढ़ने के लिये चार पुस्तकें ले गया था। यह अलग अलग विषय पर थीं।
- पहली, फ्रीमन डाइसन की 'द सन, जनोम, एण्ड द इंटरनेट' (The Sun, Genome and the Internet by Freeman J Dyson) थी। यह विज्ञान और तकनीक से संबन्धित है;
- दूसरी, मैनेजमेन्ट से संबन्धित शू शिन ली की 'बिज़िनस द सोनी वे' (Business the Sony Way by Shu Shin Luh) थी;
- तीसरी, मेरी प्रिय लेखिका आशापूर्णा देवी की हिन्दी उपन्यास 'प्रारब्ध' थी; और
- चौथी, कानून से संबन्धित, सदाकान्त कादरी की 'ट्रायल' (Trial by Sadakant kadri)।
यात्रा के बाद, मुझे लगा कि केवल पुस्तकें ले जाना ठीक था - कम से कम तीन तो पढ़ लीं। लैपटॉप न रहने के कारण भी कुछ अनुभव भी हुऐ। यह हिमाचल यात्रा संस्मरण के दौरान लिखूंगा।
दूसरे शहर में, पुस्तकों की दुकान जाना, मेरा पसंदीदा शौक है। हैदराबाद में पुस्तक की दुकान में झुंझलाहट लगी। दिल्ली और लखनऊ में पुस्तकों की दुकान के बारे में, मार्टिन गार्डनर की पुस्तकों के बारे में जिक्र करते समय किया। बुकवर्म के बन्द हो जाने के बाद मैं टैक्सन जाने लगा पर वहां का अनुभव अच्छा नहीं रहा। लेकिन दिल्ली में मेरे ठिकाने के सबसे पास टैक्सन की ही दुकान है इसलिये वहीं जाता हूं। हिमाचल यात्रा के बाद, दिल्ली में रुकते समय वहां गया था।
इस बार टैक्सन में युवतियां बात तो नहीं कर रहीं थीं पर एक सज्जन जोर जोर से मोबाइल पर पुस्तकों के ऑर्डर के बारे में बात कर रहे थे। समय की कोई पाबंदी नहीं रही होगी क्योंकि जब तक मैं वहां था वे बात करते रहे। मैंने टैक्सन से, पांच पुस्तकें ली। अब लैपटॉप न रहने के कारण अन्तरजाल पर तो भ्रमण करना था इसलिये साइबर कैफे की तलाश, में चल दिया - कभी बायें तो कभी दायें। वहीं पर एक अन्य पुस्तक की दुकान बेसमेन्ट में दिखायी पड़ी। कभी उस तरफ गया नहीं था, इसलिये इस पर कभी नजर नहीं पड़ी थी। सोचा चलो इसको देखा जाय, साइबर कैफे को बाद ढ़ूँढ़ा जायगा।
इस पुस्तक दुकान का नाम मिडलैण्ड बुक शॉप था। यह जी-८ (बेसमेन्ट) साउथ एक्सटेंशन पार्ट-१, नयी दिल्ली में है। इसमें ज्यादा पुस्तकें दिखीं पर वे अस्त-वयस्त थी। मैंने जो पुस्तकें टैक्सन में खरीदी थीं वे सारी वहां थीं पर उसके साथ बहुत सारी वे भी थीं जो टैक्सन में नहीं थीं। मुझे लगा कि पुस्तकों के मामले में यह बेहतर दुकान है। यहां पर भी मैंने चार अन्य पुस्तकें लीं। मैंने इसके मालिक से कहा,
'आपके यहां बहुत पुस्तकें हैं। इनका सेल क्यों नहीं लगा लेते ताकि पुस्तकें ठीक से लगायी जा सके और पुस्तकें ढूढ़ने में सुविधा रहे।'उसने कहा,
'मुझे पुस्तकों से प्यार है। मैं नहीं चाहता कि कोई ग्राहक पुस्तक लेने आये और हम उसे दे न सकें। इसलिये हमारी दुकान में अधिक पुस्तकें हैं। हम रोज़ एक अलमारी ठीक करते हैं लेकिन जब तक उस पर वापस आते हैं उसकी पुस्तकें पुनः अस्त-वयस्त हो जाती हैं।'
मैंने उससे बिल बनवाया तो लगभग २५०० रुपये का आया। उसने उस पर मुझे २०% कम कर दिया। मेरे कस्बे का दुकान वाला जहां मैं लगभग १५ दिन में, एक बार पहुंच जाता हूं २०% तो क्या १०% भी कम नहीं करता। यहां तो मैं पहली बार गया था। मैंने उसे पैसे कम करने के लिये भी नहीं कहा था उसने फिर भी कर दिया। मुझे आश्चर्य हुआ। मैंने उसे धन्यवाद दिया तो उसने मुस्कुराते हुऐ कहा,
'इस बात के लिये तो हम दिल्ली के दुकान पुस्तक के मालिकों के बीच बदनाम हैं।'उसने यह भी बताया,
'हमारी एक अन्य दुकान इसी नाम से २०, ऑरोबिन्दो प्लेस् हॉज़ खास नयी दिल्ली में और न्यू बुक लैण्ड नाम से इंडियन ऑयल भवन जनपथ नयी दिल्ली में भी है। आप को वहां भी कम दाम में पुस्तक मिलेगी।'दिल्ली में मुझे, मिडलैण्ड बुक शॉप के रूप में, अच्छी पुस्तक की दुकान मिल गयी है। यदि आप कभी इस दुकान पर जायें और वहां किसी ग्राहक को दुकानदार या वहां खरीदने वालों से बात करते देखें तो समझ लीजियेगा कि वह कौन व्यक्ति है।
'उन्मुक्त जी यह तो बताईये कि साउथ एक्सटेंशन में कोई साइबर कैफ़े मिला? क्या आप अन्तरजाल पर जा पाये?'हां जा तो पाया पर नानी याद आ गयी। उसके बारे में फिर कभी।
सांकेतिक शब्द