Tuesday, April 28, 2009

मैंने, आज तक, यहां हवा में कूदती हुई मछलियां नहीं देखी हैं

साउथ अफ्रीका की यात्रा विवरण की इस कड़ी में, डलस्ट्रूम (Dullstroom) (साउथ अफ्रीका) की चर्चा है। यह जगह फ्लाई फिशिंग के लिये प्रसिद्ध है।

हम लोग पिलग्रिमस् रेस्ट से नाश्ते के बाद प्रिटोरिआ के लिये चले। रास्ते में हमें चीड़ के बाग दिखाई पड़े इनकी खास बात यह थी कि नीचे तने में कोई डाल नहीं थी। वे काट दी गयी थीं। तना बहुत ऊपर तक सीधे गया था। हमारे ड्राइवर केविल ने बताया,
'तने पर बगल में जाने वाली डाल इसलिए काट दी जाती है कि तना सीधे ऊपर जा सके। यह मकान तथा फर्नीचर बनाने में सुविधाजनक रहता है।'

पिलीग्रिमस् रेस्ट से प्रिटोरिया पहुंचने में लगभग छः घण्टे लगते हैं। हम लोग रास्ते में डलस्ट्रूम (Dullstroom) नामक जगह में रूके। यहां पर हम लोगों ने रोज़ काटेज नामक जगह पर कॉफी पी। इसके नाम को सच करने के लिये इसके चारो तरफ क्यारियों में गुलाब ही गुलाब लगे थे।


हमारे पैकेज के प्रोग्राम में लिखा था कि डलस्ट्रूम फलाई फिशिंग (Fly Fishing) के लिए प्रसिद्व है। हम इसे ठीक से नहीं समझ पाये थे। यह पढ़कर हमें लगा था कि यह कोई ऎसी जगह है जहाँ पर बहुत सी मछलियां हवा मे कूदती हैं पर हमारे ड्राइवर ने कहा,
' मैं यहां से कई बार गुजरा हूं पर मैंने आज तक हवा में कूदती हुई मछलियां नहीं देखी हैं। मुझे इसके बारे में कुछ नहीं मालूम है। लेकिन आप चाहें तो टूर ऑपरेटर से पूछ सकते हैं। यदि वह कोई जगह बताती है तो मैं आपको वहां ले चल सकता हूं।'
हम लोगों ने टूर आपरेटर से पूछा तो वह भी ठीक से नहीं बता पायी। हम लोग कुछ उलझन में रहे कि यह क्या है।


रोज़ काटेज में काफी पीने के बाद जब हम लोग वहाँ से आगे निकले तो रास्ते में एक दुकान थी जिसमें लिखा हुआ था फलाई फिशिंग शॉप, हमारे ड्राइवर ने गाडी रोक ली और कहा कि हम वहाँ जाकर पूछ सकतें है।


इस दुकान के बाहर एक नोटिस लगी थी कि अच्छे स्वभाव के कुत्ते अन्दर आ सकतें हैं। उस दुकान में दो कुत्ते थे जिनका नाम कैटी और एली था। दोनों ही बहुत प्यारे कुत्ते थे। मुझे कोई व्यक्ति पसन्द कर या न करे पर कुत्ते तो मेरे प्रिय हैं वे तो हमेशा मुझे पसन्द करते हैं। मैंने प्यार इनके सर पर हाथ फेरा हाथ मिलाया फिर दुकान के अन्दर गया।



हमनें दुकानवालों से फलाई फिशिंग के बारे में पूछा। उस दुकान में जॉन नाम का लड़का था। उसने बताया कि फलाई वास्तव में एक कांटा है जिसमें मछलियां फंसती है, मछली फंसाने के लिए बेट नहीं लगाया जाता है। उसने तरह तरह के कांटे दिखाये जिसमें अलग अलग रंग के रेशे लगे थे। जॉन के मुताबिक,

'अलग अलग रंग के रेशे के पानी में पाये जाते हैं। जब कांटे में रंगों के रेशे लगा कर डाला जाता है तब मछलियां उन्हें खाने के लिए आती हैं तो कांटे में फंस जाती हैं।'

Hi John,
It was great pleasure to meet you in Dullstroom. Thanks for telling us information about fly fishing and demonstrating how to cast the rod. I hope you dogs Katti and Elli are fine.

We had wonderful trip of South Africa and will like to visit it again.

With greetings from India
Unmukt

उसने बाहर आकर हमें यह भी दिखाया कि किस तरह से कांटा रॉड में डोरे से फंसा कर फेंका जाता है। जॉन से बात करने के बाद स्पष्ट हुआ कि फलाई फिशिंग वास्तव में मछली पकड़ने का तरीका है न कि ऎसी जगह जहाँ पर मछलियाँ हवा में कूदती हों।


अगली बार प्रिटोरिया में सर्कस देखने चलेंगे।

अफ्रीकन सफारी: साउथ अफ्रीका की यात्रा
झाड़ क्या होता है? - अफ्रीकन सफारी पर।। साउथ अफ्रीकन एयर लाइन्स और उसकी परिचायिकायें।। मान लीजिये, बाहर निलते समह, मैं आपका कैश कार्ड छीन लूं।। साउथ अफ्रीका में अपराध - जनसंख्या अधिक और नौकरियां कम।। यह मेरी तरफ से आपको भेंट है।। क्रुगर पार्क की सफाई देख कर, अपने देश की व्हवस्था पर शर्म आती है।। हम दोनो व्यापार कर बहुत पैसा कमा सकते हैं।। फैंटम टार्ज़न ... यह कौन हैं?।। हिन्दुस्तानी, बिल्लियों से क्यों डरते हैं।। आपको तो शर्म नहीं आनी चाहिये।।। लगता है, आप मुझे जेल भिजवाना चाहती हैं।। ऐसा करोगे तो, मैं बात करना छोड़ दूंगी।। भगवान की दुनिया - तभी दिखायी देगी जब उसकी खिड़की साफ हो।। सर, पिछली रात, आपने जूस का पैसा नहीं दिया।। मैंने, आज तक, यहां हवा में कूदती हुई मछलियां नहीं देखी हैं।।

सालमन मछली पकड़ने के कांटे में भी सुन्दरता होती है - विश्वास नहीं यहां देखिये।


हिन्दी में नवीनतम पॉडकास्ट Latest podcast in Hindi
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is post per pilgrim's rest se pretoria jaate samy raaste mein dullstroom jagah kee charchaa hai. yes jagah fly-fishing ke liye prasidh hai. yeh hindi (devnaagree) mein hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.


This post talks about 'Dullstroom' and is on the way from Pilgrim's rest to Pretoria. It is famous for fly fishing. It is in Hindi (Devanagari script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.


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Thursday, April 23, 2009

अपने को असहाय जताकर, दूसरे को मिटा डालते हैं हम

यह चिट्ठी आशापूर्णा देवी के बारे में और उनके लिखे उपन्यास 'न जाने कहां कहां' की समीक्षा है। 

इसे आप रोमन या किसी और भारतीय लिपि में पढ़ सकते हैं। इसके लिये दाहिने तरफ ऊपर के विज़िट को देखें।

इसे आप सुन भी सकते है। सुनने के लिये यहां चटका लगायें। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
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लगभग दो दशक पहले, दूरदर्शन में, 'प्रथम प्रतिश्रुति' नामक टीवी सीरियल शुरू हुआ था। दो या तीन एपीसोड के बाद इस सीरियल ने मुझे जकड़ लिया। कुछ विस्तार से पता करने पर मालुम हुआ कि यह, इसी नाम के उपन्यास का टीवी रूपान्तर है। मैं, इस उपन्यास को खरीद लाया। इस तरह से, ८ जनवरी १९०९ में जन्मी, ज्ञानपीठ पुरुस्कार, भुवन मोहिनी समृति पदक, और रवीन्द्र पुरुस्कार से सम्मानित, आशापूर्णा देवी ने मेरे जीवन में कदम रखा। मैंने, इस उपन्यास को एक बार में ही पढ़ डाला। यह उनके जीवन में घटित घटनाओं पर ही आधारित है और एक तरह की जीवनी सी है।

आशापूर्णा देवी अपने घर में - चित्र द टेलेग्राफ के इस लेख के सौजन्य से।

अपने जीवन की घटनाओं के बाद की कथा, आशापूर्णा देवी ने, दो अन्य उपन्यास, 'सुवर्णलता' और 'बकुल कथा' में लिखा है। मैंने इनको भी चाट डाला। मुझे, यह तीनो उपन्यास, बेहद पसन्द आये - महिला सशक्तिकरण, उसका महत्व समझाने के लिये, शायद हिन्दी में इनसे बेहतर उपन्यास नहीं लिखे गये हैं। मैंने पिछले दो दशकों में इन तीनो उपन्यासों की दर्जनों प्रतिलिपियां अपने मित्रों, सहयोगियों, उनकी पत्नियों को भेंट में दी हैं। वह दिन है और आज का दिन है कि वे अपनी पुस्तकों के जरिये मेरी प्रिय महिला मित्रों में से एक हैं। मैंने आशापूर्ण देवी से कई बार मिलने की कोशिश की पर यह न हो पाया। वे १९९५ में ही चल बसीं।

मुझे इनके द्वारा लिखी और हिन्दी में अनुवादित कहीं भी कोई पुस्तक मिलती है जो मैंने न पढ़ी हो तो वह बिना सोचे खरीद लेता हूं। मैं जहां तक समझता हूं कि मैं शायद उनकी द्वारा लिखी सारी पुस्तके पढ़ चुका हूं।

कुछ समय पहले मुझे एक पुस्तक मेले में रहने का मौका मिला। इसमें मुख्यतः हिन्दी की पुस्तके थीं। मैंने यहां से हिन्दी की पुस्तकें खरीदीं। उन पुस्तकों में कुछ पुस्तकें, आशापूर्णा देवी की लिखी पुस्तकों का हिन्दी अनुवाद है। मैंने सबसे पहले इन्हीं का लिखा उपन्यास 'न जाने कहां कहां' पढ़ा। यह एक अवकाश प्राप्त विधुर प्रवासजीवन, उनके परिवार और उनके संबन्धियों की घटनाओं को लेकर लिखी गयी है।

मेरी मां हमेशा कहा करती थीं कि वे मेरे पिता के जीवन काल में ही मरना चाहती हैं। वे हमेशा सफेद साड़ी पहना करती थीं पर उन्होंने क्रिया कर्म के लिये लाल साड़ी चुन रखी थी। उनकी मृत्यु के बाद मैंने पहली बार उनको रंगीन साड़ी में देखा। 


मैं कुछ महिलाओं से मिला हूं जो यह कहती हैं कि वे अपने पति की मृत्यु के बाद मरना चाहती हैं। मैं इसे ठीक से नहीं समझ पाता था और हमेशा अपनी मां की बात को ही ठीक समझता था पर इस उपन्यास को पढ़ने के बाद बहुत कुछ और भी समझ में आया।

'न जाने कहां कहां' उपन्यास में अवकाश प्राप्त विधुर प्रवासीजीवन की लाचारी, विवशता का भी चित्रण है। इसको आशापूर्ण देवी कुछ इस प्रकार से बताती हैं,

'क्या विधवा होने के बाद, औरतें ही असहाय होती हैं? पुरुष नहीं?'
एक दूसरी जगह उनकी मनस्थिति को कुछ इस तरह से लिखती हैं,

'लेकिन यह सब बातें क्या छोटे लड़के से कह सकते हैं? क्या कह सकते हैं क्या...
सबसे बड़ी तकलीफ है पराधीनता। असहायपन।
खैर जो बात कह सकते हैं और जो सचमुच सबसे कष्टकर हो रहा है वह है अकेलापन।'
एक और जगह वे प्रवासीजीवन के द्वारा - दर्शन की, जीवन की - गहरी बात समझाती हुई लिखती हैं,

'अपने चारों ओर एक घेरा बना कर हम अपने को उसी में कैद कर लेते हैं; और फिर अपना ही दुख, अपनी वेदना, अपनी समस्या, अपनी अवसुविधा, इन्हें बहुत भारी, बहुत बड़ा समझने लग जाते हैं। और सोचते हैं कि हमसे बुरा हाल और किसी का नहीं होगा। हमसे बड़ा दुःखी इन्सान दुनिया में है ही नहीं। जब नज़र साफ कर आंखें उठा कर देखता हूं तो पाता हूं दुनिया में कितनी समस्याएं हैं। शायद हर आदमी दुखी है। अपने को महान समझकर दूसरे को दुःखी करते हैं हम। अपने को असहाय जताकर दूसरे को मिटा डालते हैं हम।'

इस उपन्यास में घटनाओं का ऐसा ताना बाना बुना गया है कि मैं उसे छोड़ ही नहीं सका पूरा पढ़ कर ही चैन आया। अच्छा उपन्यास है। नहीं पढ़ा है तो पढ़ें।

मैंने पुस्तक मेले से बहुत सारी पुस्तकें खरीदीं हैं। मुझे जो अच्छी लगेंगी उसके बारे में आने वाले समय में चर्चा करूंगा।

इस साल आशापूर्णा देवी को जन्म लिये १०० साल पूरे हो गये हैं। शायद आपमें से कुछ उनकी यादों को हमारे साथ साझा करना चाहें। मनीष जी ने उनकी पुस्तक 'लीला चिरन्तन' उपन्यास की समीक्षा यहां की है। आप भी क्यों नहीं उन पर या उनके किसी उपन्यास पर कुछ लिखते।


मेरे अन्य चिट्ठे 'लेख' पर नयी चिट्ठी 'हमने जानी है रिश्तों में रमती खुशबू'।



हिन्दी में लिखी पुस्तकों की नवीनतम समीक्षा




कुछ अन्य जीवनियां से संबन्धित चिट्ठियां 

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This post talks about Ashapurna Devi and reviews her novel
'n jaane kahaan kahaan'. It is in Hindi (Devanagari script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.

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Friday, April 17, 2009

सर, पिछली रात, आपने जूस का पैसा नहीं दिया

साउथ अफ्रीका की यात्रा विवरण की इस कड़ी में, पिलग्रिम रेस्ट (साउथ अफ्रीका) की चर्चा है।

हम लोग दोपहर तक पिलीग्रीम्स रेस्ट (Pilgrim's Rest) पहुँचे। यह जगह वर्ष १८७३ मे प्रसिद्व हो गयी थी क्योंकि यहां पर  खोदने पर सोना मिला। यहाँ पर जगह जगह से लोग सोना खोदने आने लगे। यह साउथ अफ्रीका में सोने की खादानो में, सबसे ज्यादा सोना पैदा करने वाली खदान बना।  यह १९७२ तक चलता रहा। शुरू में, लोग अकेले आकर सोना खोदने  का काम करतें थे लेकिन बाद में १८९६ में, ट्रांसवाल गोल्ड माईनिंग स्टेट  ( Transvaal Gold Mining Estate) नामक   कम्पनी बनी।  उनके पास खदानो की जगह और यह कस्बा भी  फ्रीहोल्ड में था। वर्ष १९७१ में इस कम्पनी ने इस कस्बे को सरकार को  वापस  स्थानान्तरित कर दिया। यह पूरा कस्बा   ऎतिहासिक धरोहर घोषित कर दिया गया है।  पूरे कस्बे को ही राष्ट्रीय सग्रंहालय बना दिया गया है और इसे देखने के लिए लोग आते हैं।  यहाँ पर कई संग्रहालय हैं।
 
यहाँ पर हम लोग रॉयल होटल में ठहरे। जब हम वहां  चेक-इन कर रहे थे उस समय बहुत सारे पर्यटक इसकी फोटो खींच रहे थे।  मैंने उनसे पूछा,
'आप इतने चित्र क्यों खींच रहे हैं? क्या आप  यहां ठहरे हुए हैं?
उन्होंने कहा, 
'हम यहां नहीं ठहरे हैं पर इसके चित्र इसलिए  ले रहे हैं क्योंकि न केवल यह बहुत सुन्दर है पर इसका ऎतिहासिक महत्व भी है।'
मुझे यह समझ में नहीं आया क्योंकि वास्तव में यह किसी अन्य होटल जैसे ही था। उसके बाद जब कमरे में आया तो वहां कुछ चौपन्ने थे जिसमें होटल का इतिहास लिखा था। उन्हें पढ़ कर ही, इस होटेल का महत्व समझ में आया। यह १८९५ में,  उन लोगों की सुविधायें देने के लिए बनाया गया जो वहां पर सोना खोदने के लिए आ रहे थे।
मैंने यहां पर इनके कमरे और इसकी जगहों को देखना शुरू किया तो पाया कि इसकी  सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसका रख रखाव  पुरानी तरह से ही किया जा रहा है। लगता है कि  १०० साल के पहले लोग छोटे छोटे कमरों में रहते थे। कमरे और  बाथरूम  के बीच में केवल एक पर्दा पड़ा हुआ था। सारे कमरे इसी प्रकार के थे। शायद  उस समय इस तरह से लोग रहते रहे होगें। इनके बाथरूम मे साबुन रखने का तरीका भी नयाब था। अधिकतर होटल मे साबुन द्रव्य रूप में होता है और प्लास्टिक की छोटी-छोटी शीशियों में मिलता है। यहां का साबुन कागज के पैकेट में था और साबुन के ऊपर हल्का गुलाबी रंग का रिबन लगा हुआ था। यहां पर शैम्पू की छोटी छोटी बोतले नहीं थी पर एक बड़ी बोतल थी जिसमें कार्क लगा हुआ था।  पुराने समय में इसी  तरीके से साबुन या शैम्पू रखे जाते रहे होगें। होटल वाले इस कोशिश में लगे थे कि इस होटल को उसी  वातावरण में रखा जाए जो कि उसके बनने के समय था।


यहाँ पर हम लोगों ने चार संग्रहालय देखे।
  • पहला, पिलीग्रीम न्यूज़ संग्रहालय था। इसमें वहाँ के  छपाई का इतिहास था।
  • दूसरा, गैरेज संग्रहालय है।  इसमे वह वाहन भी था जिससे सोना  निकालने के बाद ले जाया जाता था। कई पुरानी कारें भी थी।
  • तीसरा हाऊस संग्रहालय था। इसमें उस समय  के प्रयोग किये जाने वाले  समान  थे। वहां पर मुझे  हारमोनियम जैसा वाद दिखायी पड़ा। लेकिन उसके अंदर  हवा हाथ से न डाल कर, नीचे पैर से पैडल चला कर डालने की सुविधा थी। इस कमरे में फोटो लगी थी जिसमें  एक महिला साड़ी पहने हुई थी । मैंने  उस संग्रहालय के देख रेख करने वाले युवक से पूछा कि क्या  यहाँ कोई  भारतीय  रहते थे।  वह इस बात की पुष्टि नहीं कर  पाया कि इसमें भारतीय रहते थे अथवा नहीं।  वह यह भी नहीं  बता पाया कि वह वाद हारमोनियम है, क्या उसका कोई और नाम है। शायद वहां के रहने वाले को इस तरह की सूचनायें पता करके रखनी चाहिये।
  • चौथा संग्रहालय एक स्टोर था। जिसमें इस बात का इतिहास था कि वहाँ किस किस तरह की चीज़ें बेची जाती हैं और किस तरह के पोस्टर होते थे। यहां कई  पोस्टर लगे हुए थे जिसमें एक पोस्टर लैक्टो कैलामाइन लोशन (Lacto Calamine Lotion) का भी था। यह आज भी मिलता है और त्वचा के बचाव के लिये महिलायें प्रयोग करती हैं, पुरुष भी चोरी छिपे इसका प्रयोग करने में नहीं हिचकते हैं :-) इस पोस्टर की मॉडेल आड्री हेपबर्न (Audry Hepbern) थी। यह बचपन में मेरी प्रिय कलाकार हुआ करती थी। रोमन हॉलीडे (Roman Holiday), न केवल इनकी पर, रूमानी फिल्मों में सबसे प्रसिद्ध फिल्म है। मैंने  इस पोस्टर का चित्र भी लिया जिसे आप देख रहें हैं।
हमारे  घूमने के पैकेज में सुबह का नाश्ता और रात के भोजन का पैसा पहले ही ले लिया गया था। इसलिये इनके लिए हमें पुन: कोई पैसा नहीं देना था।  रॉयल होटल में रात के भोजन पर एक  वेटर ने  पूछा, 
'क्या आप कुछ ड्रिंक लेना पसन्द करेगें।' 
मैंने कहा कि मैं शराब या वाइन नही लेता हूं और जूस लेना पसन्द करूंगा। मुझे लगता था कि इसका पैसा हमें नहीं देना था पर रात के भोजन में पीने की चीज का पैसा देना था।  हम बिना दिए ही चले आए। अगले दिन जब सुबह नाश्ते पर उस वेटर ने हमसे  मुस्कुराकर  कहा,
'सर, पिछली रात आपने जूस लिया था और उसका पैसा नहीं दिया है।'
मैंने कहा कितना देना है। उसने कहा साढ़े दस रैंड। मैंने कहा, 
'बिल लेते आओ, मैं दस्तखत कर देता हूं और स्वागत कक्ष पर अदा कर दूंगा।' 
उसने जवाब था, 
'इस वक्त मेरे लिए वह पर्ची ला पाना मुश्किल है यदि आपको लगता है कि  आपको पैसा नहीं देना है तो मैं पैसा अदा कर दूंगा।' 
मुझे उसकी बात में सत्यता लगी। मैंने उसे वह पैसा दे दिया । बाद में स्वागत कक्ष पर लोगों ने इस बात की पुष्टि की, कि वह पैसा हमें देना था।  

इस कस्बे के पोस्ट आफिस में  अन्तरजाल की सुविधा थी। इस पोस्ट ऑफिस को रोज़ नामक महिला, देख रही थी। उसनें बताया कि आधे घण्टे के लिए १५ रैंड यानी की लगभग ९०/-रूपये देने होगें। मैंने यह पैसे दिए। यह कम्पयूटर  विन्डोज़ पर था पर  अच्छी बात यह थी कि इसमें फायरफॉक्स था।  हलांकि फायर फॉक्स पर हिन्दी  ठीक से नहीं दिखायी पड़ रही थी। मैंने अपनी ई-मेल देखीं और उसके बाद, हम वापस प्रिटोरिया चल दिये।
 
अफ्रीकन सफारी: साउथ अफ्रीका की यात्रा
झाड़ क्या होता है? - अफ्रीकन सफारी पर।। साउथ अफ्रीकन एयर लाइन्स और उसकी परिचायिकायें।। मान लीजिये, बाहर निलते समय, मैं आपका कैश कार्ड छीन लूं।। साउथ अफ्रीका में अपराध - जनसंख्या अधिक और नौकरियां कम।। यह मेरी तरफ से आपको भेंट है।। क्रुगर पार्क की सफाई देख कर, अपने देश की व्यवस्था पर शर्म आती है।। हम दोनो व्यापार कर बहुत पैसा कमा सकते हैं।। फैंटम टार्ज़न ... यह कौन हैं?।। हिन्दुस्तानी, बिल्लियों से क्यों डरते हैं।। आपको तो शर्म नहीं आनी चाहिये।।। लगता है, आप मुझे जेल भिजवाना चाहती हैं।। ऐसा करोगे तो, मैं बात करना छोड़ दूंगी।। भगवान की दुनिया - तभी दिखायी देगी जब उसकी खिड़की साफ हो।। सर, पिछली रात, आपने जूस का पैसा नहीं दिया।।
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(सुनने के लिये चिन्ह शीर्षक के बाद लगे चिन्ह ► पर चटका लगायें यह आपको इस फाइल के पेज पर ले जायगा। उसके बाद जहां Download और उसके बाद फाइल का नाम अंग्रेजी में लिखा है वहां चटका लगायें।: Click on the symbol ► after the heading. This will take you to the page where file is. Click where 'Download' and there after name of the file is written.)
यह ऑडियो फइलें ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप -
  • Windows पर कम से कम Audacity, MPlayer, VLC media player, एवं Winamp में;
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity, Mplayer एवं VLC में; और
  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में - सुन सकते हैं।
बताये गये चिन्ह पर चटका लगायें या फिर डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर लें।
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Sunday, April 12, 2009

शुक्रिया ... एक शर्मीली शख़्सियत का

मैंने अपनी पिछली चिट्ठी 'भगवान की दुनिया - तभी दिखायी देगी जब खिड़की साफ हो' पर भेड़ाघाट-धुआंधार का सुन्दर चित्र लगाया था। वह मेरे द्वारा नहीं खींचा गया था । उसे मैंने कहीं से चुराया था। मेरा वायदा था कि मैं उसके बारे में, अगली चिट्ठी में लिखूंगा - यह चिट्ठी उसी चोरी के बारे में है।

'लेकिन उन्मुक्त जी, आप भेड़ाघाट-धुआंधार चित्र ...?'
हां, हां उसी चित्र के बारे में बता रहा हूं। इतने उतावले क्यों हो रहे हैं।

मैंने भेड़ाघाट-धुंआंधार का चित्र नितिन जी के चिट्ठे 'पहला पन्ना' से लिया था। इस चिट्ठे पर कुछ बेहतरीन चित्र हैं। इस चिट्ठी में सारे चित्र उसी चिट्ठे से ही लिये गये हैं।


बसन्त ऋतु में पेड़ों की सुन्दरता

मैं जब पहली बार उनके चिट्ठे पर पहुंचा तो मुझे लगा कि वे किसी व्यावसायिक छविकार से कम नहीं हैं। मैं नहीं जानता वे क्या करते हैं पर शायद कंप्यूटर इंजीनियर हैं। यह मैं उनके अपने बारे में लिखे परिचय के आधार पर कह रहा हूं। वे लिखते हैं कि वे तकनीक से जुड़े हैं और उनका व्यवसाय - माथा पच्ची है। वे, अपने बारे में लिखते हैं
'अमेरिका के एक गाँव में एक भारतीय...'
अरे, इतना छोटा परिचय जो अपने बारे में कुछ न बताये। क्या आपको नहीं लगता कि वे बेहद शर्मीले हैं? मुझे तो वे शर्मीले व्यक्तित्व के लगते हैं।

मेरी उनसे मित्रता उनकी उनकी एक चिट्ठी पर टिप्पणी करने के बाद शुरू हुई। यह आज भी बरकरार है। इसके लिये मैं अपने को खुशकिस्मत और भाग्यशाली मानता हूं। वे मेरी चिट्ठियों पर अक्सर टिप्पणियां करते हैं हांलाकि मैं उनके चिट्ठे पर टिप्पणी करने से चूक जाता हूं। गलत बात है न। लेकिन यह उनके व्यक्तित्व का बड़प्पन दिखाता है कि वे दूसरे के चिट्ठे पर टिप्पणियां अपने चिट्ठे पर टिप्पणियां पाने के लिये नहीं करते। यह, टिप्पणियों के विश्लेषण में लिखी गयी, बहुत सी चिट्ठियों को नकारता है।


लगभग तीन साल पहले, उन्होंने मुझे एक पहेली भेजी जिसमें में ४=५ सिद्ध किया गया था। मैंने जब उनके पास पहेली का हल भेजा तब उन्होंने मुझे इस पर कुछ लिखने का आग्रह किया। मैंने इस पेहली को 'चार बराबर पांच, पांच बराबर चार, चार…' नामक चिट्ठी में लिखा। मैंने इसका हल नहीं लिखा क्योंकि इसका हल कुछ चिट्ठाकार बन्धुवों ने उसी चिट्ठी पर टिप्पणियों द्वारा दे दिया था।

मैंने उक्त पहेली की व्याख्या अलग तरीके से 'आईने, आईने, यह तो बता - दुनिया मे सबसे सुन्दर कौन' नामक चिट्ठी में लिखी। शायद वह नहीं सोचते थे कि इस पहेली की इस तरह से भी व्याख्या की जा सकती है।

'एक अनमोल तोहफ़ा' चिट्ठी में, सवालों के जवाब देने के लिये, उन्हें भी नामित किया गया था। सवालों का जवाब उन्होंने
अपनी चिट्ठी 'खेल खेल में' लिखा है। सवाल, 'क्या हिन्दी चिट्ठेकारी ने आपके व्यक्तिव में कुछ परिवर्तन या निखार किया?' का वे जवाब देते हुऐ लिखते हैं,
'यहां पर लिखने और पढने से मेरे विचार भी बदले हैं और आम जीवन में होने वाली घटनाओं का विश्लेषण करने का तरीका भी । उदाहरण के तौर पर मेरी लिखी ४=‍‍‍५ वाली ईमेल और उसका इतना गंभीर मतलब! शायद मैं ऐसा कभी ना सोच पाता।'



प्रेम की अभिव्यक्ति शायद इससे बेहतर ब्यान नहीं हो सकती

यह सच है कि उनके द्वारा भेजी गयी पहेली की व्याख्या करते समय असमंजस में था। कई बार लगा कि मैं उस व्याख्या को भूल जाऊं। फिर हिम्मत कर, उसे प्रकाशित किया। यह ठीक किया क्योंकि यह मेरी अधिक पढ़ी जाने वाली चिट्ठियों में से एक है। इस पर आज भी लोग सर्च कर पढ़ने आते हैं।

उक्त चिट्ठी के कारण ही, मैंने कुछ अन्य अधिक पढ़ी जाने वाली चिट्ठियां, 'मां को दिल की बात कैसे बतायें','मां को दिल की बात कैसे पता चली', 'यौन शिक्षा जरूरी है', और 'उफ, क्या मैं कभी चैन से सो सकूंगी' जैसी चिट्ठियां लिखीं। सच तो यह है कि मेरे उन्मुक्त चिट्ठे या छुटपुट चिट्ठे पर यौन शिक्षा (यहां और यहां देखें) पर लिखी सारी चिट्ठियां इसी के कारण लिखीं गयीं। मेरे चिट्ठे पर लोग इस श्रेणियों की चिट्ठियों को, या फिर इस श्रेणी पर, सबसे ज्यादा चटका लगाते हैं।

'लेकिन उन्मुक्त जी, आप भेड़ाघाट-धुआंधार चित्र की बात कर रहे हैं ...?'

ओफ हो, पहले क्यों नहीं बताया कि आप धुआंधार के चित्र को फिर से देखना चाहते हैं। मैं उसे फिर से दिखा देता हूं। इसमें क्या मुश्किल है।


हैं न कितना सुन्दर।
'उन्मुक्त जी, यदि आपने अपनी बकबक बन्द नहीं की तो मैं यहां से चला जाउंगा और कसम आपकी, मैं यहां फिर कभी नहीं आउंगा। आप भी न, बस, बिना सवाल सुने बहकने लगते हैं। मैं यह जानना चाहता हूं कि आप भेड़ाघाट-धुआंधार चित्र की बात कर रहे हैं पर पहला चित्र हाथी का क्यों लगा रखा है? क्या आपको सवाल समझ में आया या फिर से बताऊं।'
अरे भाई, अरे बहना, यह पहले क्यों नहीं बताया। इसका जवाब तो बहुत आसान है। यह चित्र नितिन जी ने अपने परिचय में अपने चित्र की जगह लगाया है। वहीं से मैंने लिंक दी है।
'उन्मुक्त जी, उन्होंने हाथी का चित्र क्यों लगया है क्या वे हाथी की तरह भारी-भरकम हैं?'
अब मैं तो यह कह नहीं सकता। मैं न तो उनसे मिला हूं न ही उनका चित्र देखा है। इसका सही उत्तर तो वही दे सकते हैं। ऐसे मैं कुछ अनुमान लगा सकता हूं।

लोग गलत समझते हैं कि जंगल का राजा शेर होता है। शायद यह इसलिये कहा जाता कि वह मांसभक्षी है। वास्तव में, हाथी शाकाहारी होने बावजूद भी, जंगल का राजा है क्योंकि वह सबसे शक्तिशाली जानवर है। शेर भी उसके रास्ते में नहीं आता है। हाथी जिस रास्ते से जाता है शेर उसके लिये वह रास्ता छोड़ देता है। शायद वास्तविक जीवन में, नितिन जी हाथी जैसे शक्तिशाली व्यक्तित्व के धनी हैं। ऐसे अन्तरजाल के काल्पनिक संसार में तो वे ऐसे ही लगते हैं।

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Thursday, April 09, 2009

भगवान की दुनिया - तभी दिखायी देगी जब खिड़की साफ हो

साउथ अफ्रीका की यात्रा विवरण की इस कड़ी में, क्रुगर पार्क से पिलग्रिम रेस्ट जाते समय रास्ते में पड़ी जगहें - लिसबन झरना और गॉडस् विंडो - की चर्चा है।

हमें, ग्रास कॉप गॉर्ज (Graskop gorge) देखने के बाद, लिस्बन झरना (Lisbon Falls) देखने जाना था। मुझे लगा कि वहाँ पर भी धुंध रहेगी और कुछ देख नहीं सकेगें लेकिन यह झरना कम ऊंचाई पर है इसलिए वहां पर धुंध बिल्कुल नहीं थी।

लिस्बन झरना पर सुन्दर नज़ारा था। वहां पहुंचकर मुझे जबलपुर के धुंवाधार झरने की याद आयी। हालांकि यह झरना जबलपुर के झरने की जितना सुन्दर नहीं हैं पर सफाई के मामले में उससे कहीं बेहतर है।


भेड़ाघाट-धुंआंधार का चित्र देखिये। है न लिस्बन झरने से कितना सुन्दर पर सफाई के मामले में बहुत पीछे।

साउथ अफ्रीका में सफाई तारीफे काबिल थी। वे सफाई के मामले में बहुत आगे हैं। क्या हम कभी साफ रह सकेंगे? हम इतने अधिक हैं कि शायद जब तक हम सब न लगें तब तक यह संभव नहीं। शायद इसके बाद भी नहीं - भारत मां की भी अपनी कमियां हैं वह इतनी बड़ी नही जिसमें हम सब समा सकें।

सफाई न रहने के कारण, बहुत से लोग अपने देश घूमने नहीं आते हैं। मुझे कश्मीर में मिली फिंनलैण्ड की हेलगा कैटरीना की याद आयी। उन्होंने मुझसे कहा था,
'मुझे भारत पसन्द है। मैं यहां अक्सर आती हूं पर गन्दगी के कारण मेरे बच्चे भारत आना पसन्द नहीं करते हैं।'


हमारा तीसरा पड़ाव गॉडस् विंडो (God's Window) नाम की जगह थी। यह एक गहरी घाटी है जिसका नाम ब्लाइड घाटी (Blyde Canyon) है। घाटी में नीचें एक नदी बहती है। यहाँ पर वर्षा वन (Rain Forest) भी है।

हमें बताया गया कि इस घाटी का नज़ारा बहुत ही सुन्दर है पर धुंध के कारण, हम इसे या फिर नदी को देखने से वंचित रह गये। बाद में हम लोगों ने वहां के चित्र देखे और पिक्चर पोस्ट कार्ड खरीदे। जिसे देख कर लगा कि शायद हम लोग वास्तव में भगवान की दुनिया देखने से वंचित रह गये।


यह दोनो चित्र मेरे द्वारा नहीं खींचे गये हैं पर पिक्चर पोस्ट कार्ड से स्कैन कर के यहां प्रकाशित किये गये हैं।



हम लोग दोपहर तक पिलीग्रीम्स रेस्ट (Pilgrim's Rest) पहुँचे। यह जगह वर्ष १८७३ में प्रसिद्व हो गयी थी क्योंकि यहां पर खोदने पर सोना मिला। इसके बारे में इस कड़ी के अगली चिट्ठी पर।

मैं जबलपुर चार बार गया हूं और हर बार भेड़ाघाट-धुंआंधार भी गया था। मुझे यह जगह अच्छी लगती है लेकिन यदि आप यह सोच रहे हैं कि भेड़ाघाट-धुआंधार का चित्र मैंने खींचा है तो आप गलत हैं। यह चित्र, मैंने कहीं से चुराया है। क्या आप उस जगह का अनुमान लगा सकते हैं? नहीं न। इसके पहले मुझे चोरी के जुर्म में जेल हो जाय मैं बहुत जल्दी अपनी अगली चिट्ठी में इस रहस्य का पर्दाफाश करूंगा।

अफ्रीकन सफारी: साउथ अफ्रीका की यात्रा
झाड़ क्या होता है? - अफ्रीकन सफारी पर।। साउथ अफ्रीकन एयर लाइन्स और उसकी परिचायिकायें।। मान लीजिये, बाहर निलते समय, मैं आपका कैश कार्ड छीन लूं।। साउथ अफ्रीका में अपराध - जनसंख्या अधिक और नौकरियां कम।। यह मेरी तरफ से आपको भेंट है।। क्रुगर पार्क की सफाई देख कर, अपने देश की व्यवस्था पर शर्म आती है।। हम दोनो व्यापार कर बहुत पैसा कमा सकते हैं।। फैंटम टार्ज़न ... यह कौन हैं?।। हिन्दुस्तानी, बिल्लियों से क्यों डरते हैं।। आपको तो शर्म नहीं आनी चाहिये।।। लगता है, आप मुझे जेल भिजवाना चाहती हैं।। ऐसा करोगे तो, मैं बात करना छोड़ दूंगी।। भगवान की दुनिया - तभी दिखायी देगी जब उसकी खिड़की साफ हो।।


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This post talks about 'Lisbon's falls' and God's Window places to see on the way to Pilgrim's rest from Kruger park. It is in Hindi (Devanagari script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.

सांकेतिक शब्द
Lisbon Falls, God's Window,
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Saturday, April 04, 2009

ऐसा करोगे तो, मैं बात करना छोड़ दूंगी

साउथ अफ्रीका की यात्रा विवरण की इस कड़ी में, क्रुगर पार्क से पिलग्रिम रेस्ट जाते समय रास्त में पड़ी जगह - ग्रासकॉप गॉर्ज - की चर्चा है।

पिलीग्रीम्स रेस्ट ( Pilgrim's Rest) जाने के लिये, हमें सुबह केविल लेने आये। हम लोग लगभग ९ बजे, सुबह पिलीग्रीम्स रेस्ट के लिए चल दिए। रास्ते में हम लोगों को तीन जगहें देखनी थी। सबसे पहले हम लोग ग्रास कॉप गॉर्ज (Graskop gorge) देखने गये। यह गहरी सी घाटी है। जिसमें एक तरफ झरना गिरता रहता है। सुबह के समय हर तरफ धुंध ही धुंध थी इसलिए कुछ अच्छी तरह दिखाई नही दे रहा था।

यहां पर, आप चाहें तो घाटी में, एक तरफ से दूसरी तरफ १३५ मीटर तार पर झूल कर जा सकतें हैं या फिर बीचो बीच में आप रस्सी में बांधकर नीचे तक (६८ मीटर), ३ सेकेन्ड में जा सकते हैं। मैंने कहा कि मैं इनमे से कुछ करना पसन्द करूंगा। इस पर मुन्ने की मां, मुझसे, गुस्सा हो गयी। उसने कहा,
'यदि तुम दोनों में से भी कुछ करोगे तो मैं तुमसे बात करना छोड़ दूंगी।'


हम लोग दूसरी तरफ गये जहाँ से यह हो सकता था। वह रास्ते भर जिद करती रही कि मुझे कुछ नहीं करना है । दूसरी तरफ एक जर्मन दम्पत्ति और उनके बच्चे थे जो कि दोनो कारनामे कर रहे थे। उस वक्त कुछ धुन्ध सी थी। इसलिए मुझे लगा कि बीचो बीच से नीचे जाना ठीक न होगा पर रस्सी में लटक कर, दूसरी तरफ तो जाया जा सकता हूँ। मैंने कैमरा मुन्ने की मां को दे दिया और उससे चित्र खींचने को कहा। उसने कहा,
'तुम जो करने जा रहे हो। उसे तो मैं देख भी नहीं सकती हूं चित्र लेने का तो सवाल ही नहीं है।'
यह कह कर उसने अपना मुंह दूसरे तरफ कर लिया। मुझे गोवा यात्रा की याद आयी जब मैंने पैरासेलिंग करने की बात की थी। मैंने जर्मन दम्पत्ति से चित्र लेने की प्रार्थना की।


शुरू में तार लटक कर एक तरफ से दूसरी तरफ जाने में डर लगा पर जब मैं बीचो बीच पहुंचा तो सारा डर समाप्त हो गया और मज़ा आने लगा। नीचे पानी था जिसमें झरना गिरता दिखायी दे रहा था। बीच में पहुंचने के बाद मेरे भार से तार कुछ नीचे हो गया था। नीचे कोई धुंध नहीं थी और मैं एक बेहतरीन नज़ारा देख सका। कुछ देर बाद उन्होनें पुन: मुझे वापस खींच लिया।

'उन्मुक्त जी, मुझे तो आपकी बात पर बिलकुल विश्वास नहीं है। आप तो डरपोक हैं। अज्ञात हो कर चिट्टकारी करते हैं, न किसी को फोन नम्बर देते हैं न ही किसी चिट्टाकार मिलन में पहुंचते हैं और न ही किसी से मिलते हैं। आप बहुत सी चिट्ठियों पर टिप्पणियां करना चाहते है पर टिप्पणी नहीं करते। तार में लटक कर घाटी में जाना तो हिम्मत का काम है। यह कार्य आपसे नहीं हो सकता इसलिये कोई चित्र नहीं है इस चिट्ठी में - हांकना बन्द कीजिये, हमें न बनाईये।'

मेरे भाई, मेरी बहना, यह सच है कि मैं अज्ञात हो कर चिट्ठाकारी करता हूं, किसी से नहीं मिलता हूं। बहुत सारी चिट्ठियों पर चाह कर भी टिप्पणियां नहीं कर पाता हूं। लेकिन मेरी भी मजबूरी है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि मैं डरपोक हूं। मुन्ने की मां के अनुसार शायद - मैं ज्यादा ही हिम्मती हूं; अपने वास्तविक जीवन में वह करने पहुंच जाता हूं जिसके बारे में लोग सोचते ही नहीं - इस लिये कई बार अपनी जान न केवल खतरे में डाल चुका हूं। खैर यह उसका सोचना है। लेकिन आप यह चित्र देखें अब तो आपको विश्वास हो गया न कि मैं तार पर लटक कर बीचों बीच गया था।



अब यह मत कह दीजियेगा कि लगता है कि चित्र में कुछ कलाकारी कर दी गयी है :-)

क्या इस यात्रा की अली कड़ी में, हम लोग चलेंगे धुआंधार और देखेंगे ईश्वर की दुनिया - गॉडस् विन्डोज़ से तो यही दिखायी देगा।


अफ्रीकन सफारी: साउथ अफ्रीका की यात्रा
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Wednesday, April 01, 2009

अन्तरजाल पर कानून में टकराव

अन्तरजाल में देशों की सीमायें नहीं हैं। इस कारण देशों के कानून में टकराव हो रहा है। श्रंखला - 'अंतरजाल की मायानगरी में' की इस कड़ी में, इसी की चर्चा है। इसे आप सुन भी सकते है। सुनने के लिये यहां चटका लगायें। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
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सुन सकते हैं। ऑडियो फाइल पर चटका लगायें। यह आपको इन फाइल के पेज पर ले जायगा। उसके बाद जहां Download और उसके बाद फाइल का नाम अंग्रेजी में लिखा है वहां चटका लगायें। इन्हेंं डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर ले।

मैंने 'अन्तरजाल की माया नगरी' श्रंखला में अन्तरजाल पर उठ रहे मुद्दों के बारे में चर्चा की थी। यह श्रंखला बहुत पहले समाप्त हो गयी थी। उसके बाद मुझे लगा कि इसके भविष्य के बारे में कुछ लिखना चाहिये। इसलिये मैने दो चिट्ठियां वेब २.० और सॅमेंटिक वेब पर लिखीं।


देशों के कानून अलग अलग हैं। इस कारण अन्तरजाल पर उठ रहे मुद्दों के हल में भी टकराव हो रहा है। मेरे विचार से, इस पर भी कुछ चर्चा, इस श्रंखला में होनी चाहिये इसी लिये यह चिट्ठी प्रकाशित कर रहा हूं।


कानून किसी भी जगह और समय के प्रतिबिम्ब होते हैं। यह उस जगह और समय की नैतिकता के प्रतीक हैं। हांलाकि कानून कितना कारगर है यह बात वहां के कानून के पालन पर निर्भर करती है। 

देशों में, मोटे तौर पर कानून एक जैसे होते हैं पर कुछ मूलभूत अन्तर के कारण, कानून में भी अन्तर होता है। वेब ने, देशों की सीमाओं को समाप्त कर दिया है। इसलिये जहां कानून में अन्तर है वहां टकराव की स्थिति पैदा हो गयी है। अभी तक इस समस्या का हल, न तो संतोषजनक रूप से निकला है, और न ही कोई रास्ता समझ में आ रहा है। आइये इसके कुछ उदाहरण देखें।


अश्लीलता देशों की नैतिकता पर निर्भर है। देशों में अश्लीलता के अलग अलग मापदन्ड हैं। बहुत से देशों में जिसे अश्लील नहीं कहा जाता उसे दूसरे देशों में अश्लील कहा जाता है। किस भी देश में स्थित वेबसाइट की सामग्री को दुनिया के किसी और देश में देखा जा सकता है। यदि उस सर्वर की वेबसाइट कुछ ऐसा साहित्य है जो कि उस देश के कानून के मुताबिक अश्लील न हो पर दूसरे देश के कानून के मुताबिक अश्लील हो तो क्या दूसरे देश में उस साहित्य को सर्वर पर डालने वाले को जेल भिजवाया जा सकता है।


यही बात मानहानि (defamation) के कानून में लागू होती है। जो समाग्री एक देश में कानूनी है पर दूसरे देश में गैरकानूनी है। सवाल यह उठता है कि उस सामग्री को किसी दूसरे देश में, जिसके कानून के अन्दर वह गैर कानूनी है, कैसे रोका जाय।


द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद, जर्मनी और फ्रांस में नाज़ी साहित्य या उनके चिन्ह या उनकी बड़ाई करने वाले साहित्य के बेचने पर मनाही है।

नाज़ी पार्टी के शासन के समय जर्मनी का राष्ट्रीय चिन्ह

याहू एक प्रसिद्ध वेबसाइट है।
Image representing Yahoo! as depicted in Crunc...चित्र क्रंच बेस के सौजन्य से
हर देश में इसकी सहायक (subsidiary) कंपनी भी पंजीकृत है।  याहू वेबसाइट बहुत सारी सेवायें भी देती है जसमें निलामी भी है। यह नाज़ी चिन्हों की निलामी भी करती है। यह बात अमेरिका में तो गैरकानूनी नहीं, पर फ्रांस और जर्मनी में है।

याहू फ्रांस, याहू की सहायक कम्पनी है जो कि फ्रांस देश में पंजीकृत है। यह वहां के कानून से बाध्य है। यह नाज़ी चिन्ह या नाज़ियों की बड़ाई करने वाला साहित्य नहीं बेच सकती है। लेकिन सवाल यह है कि याहू वेबसाइट जो अमेरिका के सर्वर पर स्थित है और अमेरिका में पंजीकृत है जिसके कानून में यह सेवा गैरकानूनी नहीं है को क्या फ्रांस के न्यायालय या सरकार ऐसा करने से मना कर सकती है कि वह ऐसा कार्य न करे क्योंकि यह वेबसाइट फ्रांस में भी देखी जा सकती है, जहां यह गैरकानूनी है। 

 
नाज़ी पार्टी का बैज़

फ्रांस के नागरिक स्वतंत्रता (civil liberty) की दो संस्थाओं ने फ्रांस में याहू पर मुकदमा ठोका। फ्रांसीसी न्यायलय ने निषधाज्ञा जारी कर याहू को इस तरह की पुस्तकें तथा चिन्ह बेचने से मना किया और आज्ञा न मानने पर हर्ज़ाना लगाया। याहू ने इस फैसले के खिलाफ अपील तो नहीं प्रस्तुत की पर अमेरिकन न्यायलय में इस बात का मुकदमा चलाया कि
  • वे, यह कार्य वे अमेरिका में कर रहे हैं;
  • जहां के कानून के अन्दर यह गैर कानूनी नहीं है; 
  • इसलिये इस फैसले शून्य घोषित किया जाय।


परीक्षण न्यायालय ने इस फैसले को शून्य घोषित कर दिया। फ्रांस की संस्थाओं ने इसके विरुद्ध अपील प्रस्तुत की जो २-१ से स्वीकार कर ली गयी पर बाद में यह फैसला पुननिरीक्षण के लिये पूरी अपीली न्यायालय के समक्ष पेश हुआ। ११ न्यायधीशों ने मुकदमे सुना और तय किया (433 F.3d 1199) कि,
'An eight-judge majority ... holds ... that the district court properly exercised specific personal jurisdiction over defendants ... A three-judge plurality of the panel concludes, as explained in Part III of this opinion, that the suit is unripe for decision ... When the votes of the three judges who conclude that the suit is unripe are combined with the votes of the three dissenting judges who conclude that there is no personal jurisdiction ... there are six votes to dismiss Yahoo!’s suit.


We therefore REVERSE and REMAND to the district court with instructions to dismiss without prejudice.'


इस फैसले में मुख्यतः अमेरीकी अपीली न्यायालय ने बहुमत द्वारा इस बात पर फैसला देने से इंकार कर दिया कि क्या अमेरीकी न्यायालय, फ्रांसीसी न्यायालय का फैसला रद्ध किया जा सकता है। तीन न्यायधीशों के मुताबिक यह सवाल अभी उठा नहीं है और यह मुकदमा परिपक्व नहीं हुआ है। क्योंकि फ्रांसीसी न्यायालय का फैसला अभी तक अमेरिका में लागू करने के लिये नहीं आया है। तीन न्यायधीशों के मुताबिक न्यायालय को विपक्ष पर निर्णय देने के लिये व्यक्तिगत अधिकार नहीं पाप्त है। इस लिये न्यायालय ने इस मुकदमे को परीक्षण न्यायालय के पास इसे यह कहते हुऐ खारिज करने के लिये भेज दिया कि यह याहू के अधिकारों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं रखेगा।


कानून में यह स्पष्ट नहीं है कि इस परस्थिति में क्या किया जाय – शायद इसका हल भविष्य में ही छिपा है। शायद, 
  • सारे देशों को एक कानून पर सहमति बनानी होगी, या
  • फ्रांसीसी न्यायालय को याहू को निषेधाज्ञा न देकर, फ्रांस में स्थित, इंटरनेट की सेवायें देने वाली कंपनियों को यह आज्ञा देनी चाहिये थी, या
  • कोई अन्य रास्ता (जो मुझे समझ में नहीं आता) वह ढ़ूढा जाय।
देखिये भविष्य इस विषय में किस तरफ करवट लेता है।


अंतरजाल की मायानगरी में
टिम बरनर्स् ली।। इंटरनेट क्या होता है।। वेब क्या होता है।। वेब २.०।। सॅमेंटिक वेब क्या है और विकिपीडिया का महत्व।। लिकिंग, क्या यह गलत है।। चित्र जोड़ना - यह ठीक नहीं।। फ्रेमिंग भी ठीक नहीं।। बैंडविड्थ की चोरी - क्या यह गैर कानूनी है।। बैंडविड्थ की चोरी - कब गैरकानूनी है।। डोमेन नाम विवाद क्या होता है।। समान डोमेन नाम विवाद नीति, साइबर और टाइपो स्कवैटिंग।। की वर्ड और मॅटा टैग विवाद।। गोलमाल है भाई गोलमाल।। अन्तरजाल पर कानून में टकराव।। समकक्ष कंप्यूटर के बीच फाइल शेयरिंग।। शॉ फैनिंग, नैपस्टर सॉफ्टवेयर, और उस पर चला मुकदमा।। कज़ा केस।। ग्रॉकस्टर केस।। ग्रॉकस्टर केस में अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय का फैसला।।

इस चिट्ठी के दोनो चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से हैं।

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